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عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:
«مَنْ صَامَ رَمَضَانَ إِيمَانًا وَاحْتِسَابًا غُفِرَ لَهُ مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِهِ»

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 38]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु से वर्णित है, उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"जिसने ईमान के साथ और नेकी की आशा मन में लिए हुए, रमज़ान के रोज़े रखे, उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 38]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि जिसने अल्लाह पर विश्वास रखते हुए, रोज़े के फ़र्ज़ होने तथा रोज़ेदारों को मिलने वाले विशाल प्रतिफल की पुष्टि करते हुए, अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए और दिखावे से बचते हुए रमज़ान के रोज़े रखे, उसके गुनाह क्षमा कर दिए जाते हैं।

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हदीस का संदेश

  1. रमज़ान के रोज़े तथा अन्य सभी नेकी के कार्यों में मन में केवल अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति की नीयत रखने का महत्व।
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