عن أبي قتادة رضي الله عنه قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: «من سَرَّهُ أَن يُنَجِّيَه الله من كَرْبِ يوم القيامة، فَلْيُنَفِّسْ عن مُعْسِر أو يَضَعْ عنه».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू क़तादा- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कहते हुए सुना हैः जिसे यह पसंद हो कि अल्लाह उसे क़यामत के दिन की परेशानी से मुक्त कर दे, उसे चाहिए कि किसी अभावग्रस्त व्यक्ति को मोहलत दे या उसका क़र्ज़ माफ़ कर दे।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

हदीस का अर्थ : "من سَرَّهُ" जिसे इस बात में खुशी महसूस हो। "أَن يُنَجِّيَه الله من كَرْبِ يوم القيامة" यानी यह कि उसे अल्लाह क़यामत के दिन की कठिनाइयों एवं परीक्षाओं से छुटकारा दे दे। "فَلْيُنَفِّسْ عن مُعْسِر" वह किसी दिवालिया व्यक्ति से क़र्ज़ का मुतालबा करने के काम को टाल दे, जब उसकी अदायगी का समय आ जाए और उसे इतना समय दे दे कि वह क़र्ज़ की अदायगी पर समर्थ हो जाए। "أو يَضَعْ عنه" या फिर उसका पूरा क़र्ज़ अथवा उसका कुछ भाग क्षमा कर दे। उच्च एवं महान अल्लाह का फ़रमान है : "और यदि तुम्हारा ऋणि असुविधा में हो, तो उसे सुविधा तक अवसर दो और अगर क्षमा कर दो, (अर्थात दान कर दो) तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है, यदि तुम समझो तो।"

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