عن أبي هريرة رضي الله عنه مرفوعاً: «من صَام رمضان إيِمَانًا واحْتِسَابًا، غُفِر له ما تَقدَّم من ذَنْبِه».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जिसने ईमान के साथ और नेकी की आशा मन में लिए हुए, रमज़ान के रोज़े रखे, उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस का भावार्थ यह है कि जिसने रमज़ान महीने के रोज़े अल्लाह पर ईमान रखते हुए, उसके वादे को सच जानते हुए, उससे सवाब की उम्मीद रखते हुए और अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के उद्देश्य से रखे तथा दिखावा एवं रियाकारी से काम नहीं लिया, उसके पिछले गुनाह माफ़ हो जाएँगे।

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हदीस का संदेश

  1. रमज़ान की फ़ज़ीलत और उसके महत्व का वर्णन। साथ ही इस बात का वर्णन कि रमज़ान रोज़े का महीना है। जिसने इस महीने के रोज़े रखे, उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाएँगे, यद्यपि वह समुद्र के झाग के समान ही क्यों न हों।
  2. महीना मिलाए बिना केवल रमज़ान कहना जायज़ होने का वर्णन।
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