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عن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال:
«أَقْرَبُ مَا يَكُونُ الْعَبْدُ مِنْ رَبِّهِ وَهُوَ سَاجِدٌ، فَأَكْثِرُوا الدُّعَاءَ».

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 482]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"बंदा अपने रब से सबसे अधिक निकट उस समय होता है, जब वह सजदे में होता है। अतः तुम उसमें ख़ूब दुआएँ किया करो।"

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 482]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि बंदा अपने रब से सबसे ज़्यादा निकट उस समय होता है, जब वह सजदे में होता है। इसका कारण यह है कि सजदे की हालत में बंदा अपने शरीर के सबसे उत्कृष्ट अंग को अल्लाह के लिए विनम्रता धारण करके ज़मीन पर रख देता है।
आपने सजदे की हालत में अधिक से अधिक दुआ करने का आदेश दिया है, ताकि अल्लाह के लिए धारण की जाने वाली इस विनम्रता और विनयशीलता में कार्य के साथ-साथ कथन भी शामिल हो जाए।

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हदीस का संदेश

  1. नेकी के काम बंदे को पवित्र एवं महान अल्लाह से निकट ले जाते हैं।
  2. सजदे की हालत में प्रचुर मात्रा में दुआ करना मुसतहब है। क्योंकि सजदा दुआ क़बूल होने की जगहों में से एक जगह है।
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