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عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
«لاَ تَقُومُ السَّاعَةُ حَتَّى يَمُرَّ الرَّجُلُ بِقَبْرِ الرَّجُلِ فَيَقُولُ: يَا لَيْتَنِي مَكَانَهُ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 7115]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"क़यामत उस समय तक क़ायम नहीं होगी, जब तक इस तरह की हालत पैदा न हो जाए कि एक व्यक्ति किसी की क़ब्र के पास से गुज़रे और कहे कि काश! इसके स्थान पर मैं होता!"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 7115]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि क़यामत उस समय तक नहीं आएगी, जब तक इस तरह का दृश्य देखने को न मिले कि एक आदमी किसी क़ब्र के पास से गुज़रे और यह कामना करे कि काश वही इस क़ब्र में दफ़न होता! इस प्रकार की कामना का कारण इस बात का डर होगा कि कहीं असत्य तथा उसके मार्ग पर चलने वाले लोगों के प्रभुत्व, फ़ितनों, गुनाहों और बुराई के प्रचलन के कारण दीन से वंचित होने की नौबत न आ जाए।

हदीस का संदेश

  1. इस बात का इशारा कि अंतिम ज़माने में गुनाह और फ़ितने सामने आएँगे।
  2. सावधान रहने, ईमान तथा अच्छे आमाल द्वारा मौत की तैयारी करने और फ़ितनों एवं आज़माइशों की जगहों से दूर रहने की प्रेरणा।
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