عَن عَبْدِ اللَّهِ بنِ مَسْعُودٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: كُنَّا مَعَ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ:
«مَنِ اسْتَطَاعَ البَاءَةَ فَلْيَتَزَوَّجْ، فَإِنَّهُ أَغَضُّ لِلْبَصَرِ، وَأَحْصَنُ لِلْفَرْجِ، وَمَنْ لَمْ يَسْتَطِعْ فَعَلَيْهِ بِالصَّوْمِ، فَإِنَّهُ لَهُ وِجَاءٌ».
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 1905]
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अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं : हम लोग अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ थे कि इसी दौरान आपने फ़रमाया :
"तुममें से जो शादी की शक्ति रखता है, वह शादी कर ले। क्योंकि शादी निगाहों को नीचा रखने तथा शर्मगाह की सुरक्षा का एक प्रमुख कारण है। और जो शादी न कर सके, वह रोज़ा रख लिया करे, क्योंकि रोज़ा कामवासना को दुर्बल करने का काम करता है।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 1905]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने संभोग एवं निकाह के खर्च उठाने की शक्ति रखने वाले तमाम लोगों को शादी करने की प्रेरणा दी है। क्योंकि निकाह कर लेने के बाद इन्सान की नज़र एवं शर्मगाह हराम चीज़ों अधिक सुरक्षित हो जाती है और बेहयाई के कामों में पड़ने की संभावना घट जाती है। अगर किसी के पास निकाह का खर्च उठाने की शक्ति न हो और वह संभोग की क्षमता रखता हो, तो उसे रोज़ा रखना चाहिए, क्योंकि रोज़ा काम-वासना को घटाने का काम करता है।