عن عبد الله بن عمر رضي الله عنهما مرفوعاً: «الْحَيَاء مِنْ الْإِيمَانِ».
[صحيح] - [متفق عليه]
المزيــد ...
अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हुए कहते हैंः “हया ईमान का एक अंश है।”
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।
हया (लज्जा) ईमान का एक भाग है, क्योंकि हयादार अपनी हया के कारण गुनाहों से बाज़ रहता और अनिवार्य कार्यों को अंजाम देता है। दरअसल यह अल्लाह पर ईमान का प्रभाव है कि जब इनसान का दिल उससे भरा हुआ हो, तो वह इनसान को गुनाहों से रोकता है और उसे अनिवार्य कामों को अंजाम देने की प्रेरणा देता है। इस तरह से देखा जाए तो बंदे पर फायदे के प्रभाव को देखते हुए हया ईमान के दर्जे में है।