عن عائشة رضي الله عنها قالت: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : "من أحدث في أمرنا هذا ما ليس منه فهو رد " وفي رواية " مَن عَمِلَ عملًا ليس عليه أمرُنا فهو رَدٌّ".
[صحيح] - [متفق عليه]
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आइशा- रज़ियल्लाहु अन्हा- कहती हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जिसने कोई ऐसा कार्य किया, जिसके सम्बंध में हमारा आदेश नहीं है, तो वह अग्रहणीय है।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

हर वह अमल अथवा कथन जो किसी भी एतबार से शरीयत से मेल नहीं खाता और उसपर शरई प्रमाण एवं सिद्धांत दलालत न करते हों, उसे आदमी के मुँह पर मार दिया जाता है और ग्रहण नहीं किया जाता।

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हदीस का संदेश

  1. किसी शासक का आदेश किसी चीज़ की असल वास्तविकता को बदल नहीं देता, क्योंकि आपका फ़रमान है : "ليس عليه أمرنا" यानी जो हमारे धर्म के अनुरूप न हो। याद रहे कि यहाँ "أمر" से मुराद धर्म है।
  2. धर्म की बुनियाद शरीयत पर है।
  3. अक़ीदा एवं अमल से संबंधित सारी बिदअतें बातिल हैं। जैसे अल्लाह को क़ुरआन एवं सुन्नत से साबित उसके गुणाों से ख़ाली मानने, ईमान के बाद किसी भी गुनाह का कोई प्रभाव न होने की बात कहने, तक़दीर का इनकार करने और गुनाहों के कारण किसी को काफ़िर घोषित कर देने की बिदअतें और अक़ीदा से संबंभित बिदअतें आदि।
  4. धर्म किसी के मत एवं किसी चीज़ को अच्छा समझने से नहीं चलता।
  5. इस्लाम के एक संपूर्ण धर्म होने का इशारा।
  6. धर्म के नाम पर वजूद में आने वाली हर उस नई चीज़ का खंडन, जो शरीयत के अनुरूप न हो। दूसरी रिवायत में धर्म में नाम पर वजूद में आने वाली हर नई चीज़ को छोड़ने का स्पष्ट निर्देश है, चाहे उसे करने वाले ने खुद ही ईजाद किया हो या फिर पहले से चली आ रही हो।
  7. सभी निषिद्ध अनुबंधों के अमान्य होने और उनके नतीजे में सामने आने वाले परिणामों के वजूद में न आने की घोषणा।
  8. किसी चीज़ की मनाही इस बात को प्रमाणित करती है कि वह फ़ासिद है, क्योंकि मना की गई चीज़ें धर्म का भाग नहीं हैं। अतः, उनका अमान्य होना ज़रूरी हो गया।
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