عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: «ما نهيتكم عنه فاجتنبوه، وما أمرتكم به فأْتُوا منه ما استطعتم، فإنما أَهلَكَ الذين من قبلكم كثرةُ مسائلهم واختلافهم على أنبيائهم».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को कहते हुए सुनाः मैं तुम्हें जिस चीज़ से रोकूँ, उससे बचते रहो और जिस चीज का आदेश दूँ, उसे जहाँ तक हो सके किए जाओ, क्योंकि तुमसे पहले के लोगों को उनके अधिक प्रश्नों और नबियों के विरोध ने हलाक किया है।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने हमें बताया है कि जब वह हमें किसी चीज़ से मना करे, तो उससे बिना किसी अपवाद के बचना पड़ेगा और जब किसी बात का आदेश दे, तो उसे शक्ति भर करना पड़ेगा। फिर हमें इस बात से सावधान किया कि हम उन पिछले समुदायों की तरह न हो जाएँ, जो अपने नबियों पर सवाल पर सवाव दागते गए और उनका विरोध भी करते रहे। परिणामस्वरूप अल्लाह ने उन्हें सज़ा के तौर पर तरह-तरह की हलाकतों में डाल दिया। अतः, हमें उनकी तरह नहीं होना चाहिए, ताकि उसी तरह की हलाकतों का सामना न करना पड़े।

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हदीस का संदेश

  1. आदेशों का पालन करने तथा निषेधों से बचने का आदेश।
  2. मना की हुई चीज़ों से बचने के मामले में कोई छूट नहीं है। जबकि जिन चीज़ों को करने का आदेश है, उनके पालन के साथ शक्ति की क़ैद लगी हुई है। क्योंकि बचना इनसान की क्षमता के अंदर की चीज़ है, जबकि करने के लिए आदेशित कार्य को करने की शक्ति की आवश्यकता होती है।
  3. अधिक प्रश्न करने की मनाही। उलेमा ने प्रश्न के दो प्रकार बताए हैं : पहला वह प्रश्न जो धर्म से संबंधित मामलों में जानकारी प्राप्त करने के लिए किया गया हो। इस तरह के प्रश्न का आदेश दिया गया है और सहाबा -रज़ियल्लाहु अनहुम- के प्रश्न इसी प्रकार के दायरे में आते थे। दूसरा वह प्रश्न जो बाल की खाल निकालने के लिए किया गया हो। इसी प्रकार के प्रश्न से मना किया गया है।
  4. इस उम्मत को अपने नबी की मुख़ालिफ़त से मना किया गया है, जैसा कि पिछली उम्मतों में होता आया है।
  5. निषेध के अंदर कम और अधिक दोनों शामिल हैं। क्योंकि उससे बचने के आदेश का पालन उसी समय हो पाएगा, जब उसके कम एवं अधिक दोनों से बचा जाए। मिसाल के तौर पर सूद (ब्याज) से जब मना कर दिया गया, तो उसमें कम और अधिक दोनों शामिल हैं।
  6. हराम कामों की ओर ले जाने वाले असबाब को छोड़ना। क्योंकि यह बचने के अर्थ का एक अंश है।
  7. इनसान के पास क्षमता एवं सामर्थ्य होता है, क्योंकि आपका फ़रमान है : "जहाँ तक तुम्हारी शक्ति हो।" इस तरह, इसमें जबरिया संप्रदाय का खंडन है, जो कहते हैं कि इनसान की कोई क्षमता नहीं होती और वह अपने अमल पर मजबूर होता है। यहाँ तक कि इनसान बात करते समय अपना हाथ भी हिलाता है, तो अपनी मर्ज़ी से नहीं हिलाता, बल्कि उसपर मजबूर होता है। सच्चाई यह है कि यह एक असत्य मत है, जिसके अंदर बहुत-से दोष मौजूद हैं।
  8. इनसान जब अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का आदेश सुने, तो उसे क्या यह वाजिब है या मुसतहब है, नहीं कहना चाहिए, क्योंकि आपने कहा है : "فَأْتُوا مِنْهُ مَا استَطَعْتُمْ" यानी जहाँ तक हो सके, उसका पालन करो।
  9. अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जिस बात का आदेश दिया है या जिससे रोका है, वह शरीयत है। चाहे वह क़ुरआन में मौजूद हो या न हो। इसलिए क़ुरआन के अतिरिक्त सुन्नत का भी पालन किया जाएगा, चाहे वह आदेश के रूप में हो या निषेध के रूप में।
  10. अधिक प्रश्न करना विनाश का कारण है। विशेष रूप से उन बातों के बारे में जिनकी जानकारी प्राप्त करना संभव नहीं है। जैसे परोक्ष की बातें, अल्लाह के नाम एवं गुण क़यामत के दिन के हालात आदि। इन मामलों में अधिक सवाल हलाकत का कारण है और इस तरह का व्यक्ति बाल की खाल निकालने वाला समझा जाएगा।
  11. पिछली उम्मतें अधिक प्रश्न करने तथा अपने नबियों से अधिक मतभेद के कारण हलाक हो गईं।
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