عَنْ ابْنَ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا قَالَ: سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ:
«إِذَا رَأَيْتُمُوهُ فَصُومُوا، وَإِذَا رَأَيْتُمُوهُ فَأَفْطِرُوا، فَإِنْ غُمَّ عَلَيْكُمْ فَاقْدُرُوا لَهُ».
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 1900]
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अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है, वह कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना है :
"जब तुम (रमज़ान का) चाँद देखो, तो रोज़ा रखो और जब (शव्वाल का) चाँद दखो, तो रोज़ा रखना बंद कर दो। (और) अगर आकाश बादल से ढका हुआ हो, तो उसका अंदाज़ा लगा लो। (यानी महीने के तीस दीन पूरे कर लो।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 1900]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमज़ान महीना दाख़िल होने और उसके निकलने की निशानी बयान करते हुए फ़रमाया है : जब तुम रमज़ान महीने का चाँद देख लो, तो रोज़ा रखो। अगर बादल छाए रहने या बीच में कोई रुकावट होने के कारण चाँद नज़र न आ सके, तो शाबान महीने के तीस दिन पूरे कर लो। इसी तरह जब शव्वाल का चाँद देखो, तो रोज़ा रखना बंद कर दो। अगर बादल छाए रहने या बीच में कोई रुकावट होने के कारण चाँद नज़र न आ सके, तो रमज़ान महीने के तीस दिन पूरे कर लो।