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عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«مَنْ عَالَ جَارِيَتَيْنِ حَتَّى تَبْلُغَا جَاءَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَنَا وَهُوَ» وَضَمَّ أَصَابِعَهُ.

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 2631]
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अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है :
"जिसने दो लड़कियों का लालन-पालन किया, यहाँ तक कि वह बड़ी हो गईं, तो क़यामत के दिन वह तथा मैं इस तरह आएँगे।" फिर आपने अपनी ऊँगलियों को मिलाया।

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 2631]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया कि जिसने दो बेटियाँ या दो बहनें दी गईं और उसने उनका खर्च उठाया, उनकी तर्बियत की, अच्छाई सिखाई और बुराई से सचेत किया, फिर दोनों बड़ी और वयस्क हो गईं, तो वह और अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़यामत के दिन कुछ इस तरह आएँगे। यह कहते समय आपने अपनी शहादत की उंगली और बीच वाली उंगली को मिलाकर दिखाया।

हदीस का संदेश

  1. बेटियों के विवाह या युवावस्था तक का खर्च उठाना तथा उनकी तर्बियत की व्यवस्था करना बहुत बड़ी नेकी और सवाब का काम है। यही हाल बहनों का भी है।
  2. लड़कियों के पालन-पोषण का सवाब लड़कों के पालन-पोषण से अधिक है। क्योंकि यहाँ लड़कियों के बारे में जो बातें कही गई हैं, वह लड़कों के बारे में नहीं कही गई हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लड़कियों का खर्चा और उनके मामलों में ध्यान देना लड़कों के मामलों से ज़्यादा (बड़ा) है, तथा अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे 'छुपाने योग्य' (पर्दे और हिफाज़त के लायक) होती हैं, वे अपने मामलों को खुद सीधे तौर पर अंजाम नहीं दे सकतीं, साथ ही, पिता उनसे यह अपेक्षा नहीं करता कि अपने बेटों की तरह शत्रु का सामना करते समय वह उनसे शक्ति प्राप्त करेगा, उसका नाम अमर रहेगा और इनसे उसका वंश आगे बढ़ेगा। इसलिए, उनके पालन-पोषण और देखभाल के लिए धैर्य तथा निष्ठा की आवश्यकता होती है। इसलिए इसमें सवाब भी अधिक है और ऐसे व्यक्ति को क़यामत के दिन अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का साथ नसीब होगा।
  3. महिला के वयस्क होने की निशानियाँ : पंद्रह वर्ष पूरे हो जाना, माहवारी आ जाना पंद्रह वर्ष से पहले ही क्यों न हो, जघन बाल उग आना या स्वप्नदोष होना यानी नींद का अवस्था में वीर्य का निकल जाना।
  4. क़ुर्तुबी कहते हैं : दोनों के वयस्क होने का अर्थ है ऐसी स्थिति तक पहुँचना, जहाँ दोनों अपने आप में मज़बूत हो जाएँ। और महिलाएँ तभी अपने आपमें मज़बूत होती हैं जब वे विवाहित हो जाती हैं। इसलिए, वयस्क होने का मतलब माहवारी आना या शरई ज़िम्मेवारियों के निर्वहन का पाबंद हो जाना नहीं है। क्योंकि यह भी संभव है कि विवाह वयस्क होने से पहले ही हो जाए और भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति पर आ जाए। इसके विपरीत, ऐसा भी होता है कि माहवारी शुरू हो गई हो, लेकिन वह अपने बारे में सोचने और अपने हितों के बारे में निर्णय लेने में सक्षम न हो सकी हो। ऐसे में अगर उसे अकेला छोड़ दिया गया तो यह बर्बाद हो जाएगी और उसकी स्थिति खराब हो जाएगी। अतः ऐसी स्थिति में उसे अधिक सुरक्षा और देखभाल की आवश्यकता होती है, ताकि लोग उससे विवाह करने के लिए इच्छुक हों। इन्हीं बातों के मद्देनज़र उलेमा ने कहा है कि लड़की के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके वयस्क होने पर पिता से समाप्त नहीं हो जाती, बल्कि उसके जीवन में उसके पति के आने के बाद समाप्त होती है।
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