«نَارُكُمْ جُزْءٌ مِنْ سَبْعِينَ جُزْءًا مِنْ نَارِ جَهَنَّمَ»، قِيلَ: يَا رَسُولَ اللَّهِ، إِنْ كَانَتْ لَكَافِيَةً. قَالَ: «فُضِّلَتْ عَلَيْهِنَّ بِتِسْعَةٍ وَسِتِّينَ جُزْءًا كُلُّهُنَّ مِثْلُ حَرِّهَا».
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 3265]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"तुम्हारी आग जहन्नम की आग के सत्तर भागों में से एक भाग है।" किसी ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यही तो काफ़ी थी। आपने कहा : "जहन्नम की आग को तुम्हारी आग पर उनहत्तर भाग अधिक किया गयहा है। हर भाग दुनिया की आग की तरह गर्म है।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 3265]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि दुनिया की आग जहन्नम की आग के सत्तर भाग में से एक भाग है। चुनांचे आख़िरत की आग की गर्नी दुनिया की आग की गर्मी से उनहत्तर भाग अधिक होगी। उसके हर भाग की गर्मी दुनिया की आग के बराबर होगी। किसी ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल! दुनिया की आग ही तो जहन्नम जाने वालों को यातना देने के लिए पर्याप्त थी। तो आपने कहा : जहन्नम की आग को दुनिया की आग से उनहत्तर गुना अधिक गर्म बनाया है।