عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرِو بْنِ الْعَاصِ رضي الله عنهما أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَدْعُو بِهَؤُلَاءِ الْكَلِمَاتِ:
«اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ غَلَبَةِ الدَّيْنِ، وَغَلَبَةِ الْعَدُوِّ، وَشَمَاتَةِ الْأَعْدَاءِ».
[صحيح] - [رواه النسائي وأحمد] - [سنن النسائي: 5475]
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अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इन शब्दों द्वारा दुआ किया करते थे :
"ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण माँगता हूँ क़र्ज़ के बोझ तथा शत्रुओं के हावी होने और दुश्मनों के हँसने से।"
[सह़ीह़] - - [سنن النسائي - 5475]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने निम्नलिखित चीज़ों से अल्लाह की शरण माँही है :
1- "اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ غَلَبَةِ الدَّيْنِ" यानी ऐ अल्लाह! मैं केवल तेरी शरण माँगता हूँ क़र्ज़ के दबाव, बोझ, शोक एवं बेचीनी से। मेरा क़र्ज़ अदा हो जाए, इसके लिए मैं तेरी सहायता माँगता हूँ।
2- "وَغَلَبَةِ الْعَدُوِّ" शत्रु के प्रभुत्व से तेरी शरण माँगता हूँ। मुझे उसके अत्याचार से बचा और उसपर विजयी बना।
3- "وشماتة الأعداء" तथा इस बात से तेरी शरण माँगता हूँ कि मुझपर ऐसी कोई विपत्ति आए कि दुश्मनों को हँसने का अवसर मिले।