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عن الأغر بن يسار المزني رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : «يا أيُّهَا النَّاسُ، تُوبُوا إلى اللهِ واسْتَغْفِرُوهُ، فَإنِّي أَتُوبُ في اليَّومِ مائةَ مَرَّةٍ».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अग़र्र बिन यसार मुज़नी- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः ऐ लोगो! अल्लाह के सामने तौबा करो और उससे क्षमा माँगो, क्योंकि खुद मैं दिन में सौ बार तौबा करता हूँ।
[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जिनके अगले-पिछले सारे गुनाह माफ़ थे, लोगों को तौबा एवं क्षमायाचना का आदेश दे रहे हैं और अपने बारे में बता रहे हैं कि वह दिन में सत्तर बार से अधिक अल्लाह से क्षमायाचना और उसके सामने तौबा करते हैं। ऐसा कर आप उम्मत को इस सत्कर्म की ओर प्रेरित कर रहे हैं। याद रहे कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की क्षमायाचना इसलिए नहीं हुआ करती थी कि आपसे कुछ गुनाह हो जाया करते थे, बल्कि यह अल्लाह की संपूर्ण दासता, उसके ज़िक्र से आपके लगाव, उसके विशाल अधिकार के एहसास और बंदे की कोताही, चाहे वह उसकी नेमतों का शुक्र अदा करने के लिए जितना भी काम करे, का प्रतीक है। यह दरअसल अपने बाद उम्मत के लिए आदर्श प्रस्तुत करने का एक उदाहरण है। इसके अंदर इस प्रकार के अन्य कई हिकमतें हैं।

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