عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
«مَا مِنْ يَوْمٍ يُصْبِحُ العِبَادُ فِيهِ إِلَّا مَلَكَانِ يَنْزِلاَنِ، فَيَقُولُ أَحَدُهُمَا: اللَّهُمَّ أَعْطِ مُنْفِقًا خَلَفًا، وَيَقُولُ الآخَرُ: اللَّهُمَّ أَعْطِ مُمْسِكًا تَلَفًا».
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 1442]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है :
"जिस दिन भी बंदे सुबह करते हैं, दो फ़रिश्ते उतरते हैं; एक कहता है : ऐ अल्लाह ख़र्च करने वाले को उत्तम प्रतिफल प्रदान कर। जबकि दूसरा कहता है : ऐ अल्लाह, रोकने वाले (कंजूस) का विनाश कर।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 1442]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया कि हर दिन, जिसमें सूरज निकलता है, दो फ़रिश्ते उतरकर पुकारते हैं। एक कहता है :
ऐ अल्लाह! नेकी के कामों में, बाल-बच्चों पर और अतिथियों पर खर्च करने वालों को बेहतर बदला प्रदान कर और उसके धन में बरकत दे।
जबकि दूसरा कहता है : ऐ अल्लाह! ख़र्च करने से हाथ रोक कर रखने वाले के माल को, जिसे उसने हक़दारों को देने से रोक रखा है, नष्ट कर दे।