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عَنْ عَائِشَةَ أُمِّ المُؤْمِنين رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا، قَالَتْ:

مَا رَأَيْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مُسْتَجْمِعًا قَطُّ ضَاحِكًا، حَتَّى أَرَى مِنْهُ لَهَوَاتِهِ، إِنَّمَا كَانَ يَتَبَسَّمُ.
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 6092]
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आइशा (रज़ियल्लाहु अंहु) कहती हैं कि मैंने कभी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को इस तरह खिल-खिलाकर हँसते हुए नहीं देखा कि आपके कौए नज़र आने लगें। आप केवल मुस्कुराया करते थे।
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

आइशा -रज़ियल्लाहु अनहा- की यह हदीस अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं, जैसे प्रतिष्ठा और धीरज आदि का चित्रण करती है। वह कहती हैं : "मैंने कभी अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को इस तरह खिल-खिलाकर हँसते हुए नहीं देखा कि आपके कौए नज़र आने लगें। आप केवल मुस्कुराया करते थे।" यह आपके धीरज एवं सज्जनता का परिचायक है।

हदीस का संदेश

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