वर्गीकरण:
عَنِ أبي زُهير عُمَارَةَ بْنِ رُؤَيْبَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم:

«لَنْ يَلِجَ النَّارَ أَحَدٌ صَلَّى قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ غُرُوبِهَا»
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू ज़ुहैर उमारा बिन रुवैबा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जो व्यक्ति सुर्य निकलने तथा डूबने से पूर्व नमाज़ पढ़ता है, वह जहन्नम में कदापि प्रवेश नहीं करेगा। जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि हम लोग अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास थे कि आपने पूर्णिमा की रात में चाँद की तरफ देखकर फरमायाः निश्चय ही तुम अपने रब को उसी तरह देखोगे, जैसे इस चाँद को देख रहे हो। उसे देखने में तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी। इसलिए अगर तुमसे हो सके कि सुस्ती से पराजित न हो तो सूर्य के उगने और डूबने से पहले की नमाज़ अवश्य पढ़ा करो। एक रिवायत में हैः आपने चौदहवीं की रात में चाँद की ओर देखा।
दोनों रिवायतों को मिलाकर सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

उमारा -रज़ियल्लाहु अनहु- की इस हदीस का मतलब यह है कि कोई ऐसा व्यक्ति -यातना के लिए सिरे से जहन्नम में दाख़िल नहीं होगा या हमेशा रहने के लिए जहन्न में प्रवेश नहीं करेगा- जिसने सूरज निकलने और डूबने से पहले नमाज़ पढ़ी यानी फ़ज्र एवं अस्र की नमाज़ पाबंदी से पढ़ी। क्योंकि सुबह का समय मीठी नींद सोने का समय होता है और अस्र का समय दिन के कार्यों, व्यसाय एवं अन्य कामों में व्यस्तता का समय होता है। अतः इन समयों में नमाज़ पढ़ना इन्सान के सुस्ती से मुक्त होने और इबादत से प्रेम रखने का प्रमाण है। फिर, इन दोनों नमाज़ों की पाबंदी से यह लाज़िम आता है कि वह अन्य नमाज़ों को भी स्थापित करेगा। बल्कि जब इन दोनों नमाज़ों की पाबंदी करता है, तो अन्य नमाज़ों की पाबंदी अधिक करेगा। फिर, जिस बंदे का यह हाल हो, उससे आशा रहती है कि वह किसी बड़े एवं छोटे गुनाह में लिप्त नहीं होगा और अगर हो भी जाए, तो तौबा कर लेगा। या फिर उसके अल्लाह के अधिकार से संबंध रखने वाले छोटे गुनाह नमाज़ की पाबंदी के कारण क्षमा कर दिए जाएँगे। ऐसे में, वह कभी जहन्नम में प्रवेश नहीं करेगा। तथा जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि वे अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथ थे। इसी बीच आपने चौदहवीं रात के चाँद की ओर देखा और फ़रमाया : "निश्चय ही तुम अपने रब को उसी तरह देखोगे, जिस तरह इस चाँद को देख रहे हो।" यानी ईमान वाले क़यामत के दिन जन्नत में अपने पालनहार को उसी तरह देखेंगे, जिस तरह चौदहवीं की रात में चाँद को देखते हैं। यहाँ यह याद रहे कि इसका मतलब यह नहीं है कि अल्लाह चाँद की तरह है। क्योंकि अल्लाह के जैसी कोई चीज़ नहीं है। वह हर चीज़ से महान और ऊँचा है। यहाँ मुराद दरअसल एक देखने को दूसरे देखने के समान बताना है। कहने का मतलब यह है कि जिस तरह हम चौदहवीं की रात को चाँद को बिना किसी संदेह के उसके वास्तविक रूप से देख सकते हैं, उसी तरह हम अपने पालनहार को अपनी आँखों से वास्तविक रूप में देख सकते हैं। ज्ञात हो कि आख़िरत में जन्नतियों के लिए सबसे रोचक एवं दिलचस्प नेमत होगी अल्लाह के मुखमंडल को देखने का सौभाग्य प्राप्त करना। कोई अन्य नेमत उसकी बराबरी नहीं कर सकती। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने यह कहने के बाद कि हम अपने पालनहार को उसी तरह देख सकेंगे, जिस तरह चौदहवीं की रात में चाँद को देख सकते हैं, आगे कहा : "इसलिए अगर तुमसे हो सके कि सुस्ती से पराजित न हो तो सूर्य के उगने और डूबने से पहले की नमाज़ अवश्य पढ़ा करो।" हदीस के शब्द : "استطعتم ألا تغلبوا على صلاة" अर्थ यह है कि यदि हो सके तो इन दोनों नमाज़ों को संपूर्ण रूप से पढ़ने और जमात से अदा करने में सुस्ती को अवरुद्ध न बनने दो, तो ऐसा ज़रूर करो। इस हदीस से मालूम हुआ कि फ़ज्र एवं अस्र की नमाज़ की पाबंदी करना, सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह के मुखमंडल को देखने का सौभाग्य प्रदान करने वाली चीज़ों में से है।

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