عن أبي بكر الصديق رضي الله عنه قال: يا أيُّها النَّاس، إِنَّكُم لَتَقرَؤُون هذه الآية: (يَا أَيُّها الَّذِين آمَنُوا عَلَيكُم أَنفسَكُم لاَ يَضُرُّكُم مَنْ ضَلَّ إِذَا اهْتَدَيتُم) [المائدة: 105]، وَإِنِّي سمِعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: «إِنَّ النَّاس إِذا رَأَوُا الظَّالِمَ فَلَم يَأْخُذُوا عَلَى يَدَيه أَوشَكَ أَنْ يَعُمَّهُمُ اللهُ بِعِقَابٍ مِنْهُ».
[صحيح] - [رواه أبو داود والترمذي والنسائي وابن ماجه وأحمد]
المزيــد ...
अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अंहु) फ़रमाते हैंः ऐ लोगो, तुम लोग यह आयत पढ़ते होः "ऐ ईमान वालो, तुम अपनी फ़िक्र करो। यदि तुम सुपथ पर रहे, तो कुपथ होने वाले तुम्हें क्षति नहीं पहुँचा सकते" (अल-माइदाः 105) जबकि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फ़रमाते हुए सुना हैः "जब लोग किसी को अत्याचार करते हुए देखें और उसका हाथ न पकड़ें, तो संभव है कि अल्लाह उन तमाम लोगों पर अपना अज़ाब उतार दे।"
[सह़ीह़] - [इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है । - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है। - इसे नसाई ने रिवायत किया है। - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है।]
अबू बक्र सिद्दीक़ -रज़ियल्लाहु अनहु- ने फ़रमाया : ऐ लोगो, तुम लोग यह आयत पढ़ते हो : "ऐ ईमान वालो, तुम अपनी फ़िक्र करो। यदि तुम सुपथ पर रहे, तो कुपथ होने वाले तुम्हें क्षति नहीं पहुँचा सकते।" [अल-माइदा : 105] और इससे यह समझते हो कि यदि इनसान स्वयं सत्य के मार्ग पर हो, तो लोगों की पथभ्रष्टता से उसे कुछ हानि नहीं होने वाली। क्योंकि वह स्यवं सीधे मार्ग पर चल रहा है और जब वह स्वयं सीधे मार्ग पर चल रहा है, तो दूसरे लोगों का मामला सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह के हाथ में है। लेकिन यह अर्थ त्रुटिपूर्ण है। क्योंकि अल्लाह ने किसी की पथभ्रष्टता से हमें कोई हानि न होने के लिए हमारे सुपथ पर होने की शर्त रखी है। उसका फ़रमान है : "यदि तुम सुपथ पर रहे, तो कुपथ होने वाले तुम्हें क्षति नहीं पहुँचा सकते।" जबकि सुपथ पर रहने के अंदर यह बात भी दाख़िल है कि हम भलाई का आदेश दें और बुराई से रोकें। फिर जब बात ऐसी है, तो हमें क्षति से सुरक्षित रहने के लिए भालाई का आदेश देना होगा और बुराई से रोकना होगा। यही कारण है कि अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अनहु- ने आगे फ़रमाया : "मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को फ़रमाते हुए सुना है : "जब लोग किसी को अत्याचार करते हुए देखें और उसका हाथ न पकड़ें, तो संभव है कि अल्लाह उन तमाम लोगों पर अपना अज़ाब उतार दे।" यानी यदि वे पथभ्रष्ट व्यक्ति को देखते हैं और उसे भलाई का आदेश नहीं देते तथा बुराई से नहीं रोकते, तो उन्हें क्षति होगी और ऐसा संभव है कि अल्लाह ऐसी कोई यातना भेज दे, जिसकी चपेट में सभी लोग आ जाएँ। ग़लत काम करने वाले भी और ग़लत होता हुआ देख चुप रहने वाले भी।