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عَنِ ‌ابْنِ عَبَّاسٍ رَضِيَ اللهُ عَنْهُمَا قَالَ:
أُنْزِلَ عَلَى رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَهُوَ ابْنُ أَرْبَعِينَ، فَمَكَثَ بِمَكَّةَ ثَلَاثَ عَشْرَةَ سَنَةً، ثُمَّ أُمِرَ بِالْهِجْرَةِ، فَهَاجَرَ إِلَى الْمَدِينَةِ، فَمَكَثَ بِهَا عَشْرَ سِنِينَ، ثُمَّ تُوُفِّيَ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ.

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 3851]
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अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है, उन्होंने कहा:
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर चालीस साल की उम्र में वह्य उतरी। फिर आप तेरह साल तक मक्का में रहे। उसके बाद आपको हिजरत (पलायन) का आदेश हुआ तो आपने मदीना की तरफ हिजरत (पलायन) किया और आप वहाँ दस बरस रहे। इसके बाद आपने मृत्यु पाई।

सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अनहुमा बता रहे हैं कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर जब पहली वह्य उतरी और आपको नबी बनाया गया, तो आपकी उम्र चालीस साल थी। पहली वह्य उतरने के बाद आप मक्का में तेरह साल रहे। फिर मदीने की ओर पलायन करके चले जाने का आदेश हुआ, तो आप मदीना चले गए और वहाँ दस साल रहे। फिर तिरसठ साल की उम्र में वफ़ात पाई।

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हदीस का संदेश

  1. सहाबा अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सीरत से खास दिलचस्पी रखते थे।
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