عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه:
أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَقُولُ فِي سُجُودِهِ: «اللهُمَّ اغْفِرْ لِي ذَنْبِي كُلَّهُ دِقَّهُ، وَجِلَّهُ، وَأَوَّلَهُ وَآخِرَهُ وَعَلَانِيَتَهُ وَسِرَّهُ».
[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 483]
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अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- का वर्णन है कि :
अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- सजदे की हालत में यह दुआ किया करते थे : “हे अल्लाह, तू मेरे समस्त पापों को क्षमा कर दे; छोटे-बड़े, अगले-पिछले तथा स्पष्ट-अस्पष्ट सभी को।”
[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 483]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सजदे में यह दुआ किया करते थे : "اللهم اغفر لي ذنبي" यानी ऐ अल्लाह! मेरे सारे गुनाहों को क्षमा कर दे, उनपर पर्दा डाल दे और मुझे उनके कुप्रभावों से बचाए रख। "كله" सारे गुनाह, यानी "دِقّه" छोटे और कम गुनाह "وجِلّه" तथा बड़े और अधिक गुनाह "وأوله" पहले गुनाह, "وآخره" अंतिम गुनाह और बीच के सारे गुनाह "علانيته وسره" खुले और छुपे गुनाह, जिन्हें तेरे सिवा कोई नहीं जानता।