عن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم كانَ يقولُ في سجودِهِ: «اللَّهُمَّ اغْفِرْ لي ذَنْبِي كُلَّهُ: دِقَّهُ وَجِلَّهُ، وَأَوَّلَهُ وَآخِرَهُ، وَعَلاَنِيَتَهُ وَسِرَّهُ».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू हुरैरा (रज़़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सजदे की हालत में यह दुआ करते थेः "c2">“हे अल्लाह, तू मेरे समस्त पापों को क्षमा कर दे; छोटे-बड़े, स्पष्ट-अस्पष्ट तथा अगले-पिछले सभी को।”
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- से रिवायत है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- सजदे में कहा करते थे : "हे अल्लाह, तू मेरे समस्त पापों को क्षमा कर दे; छोटे-बड़े, स्पष्ट-अस्पष्ट तथा अगले-पिछले सभी को।" यह दरअसल दुआ में विस्तार से काम लेने का एक उदाहरण है। क्योंकि दुआ इबादत है और बंदा जितनी बार उसे दाहराएगा, सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह की इबादत उतनी ही अधिक करेगा। फिर इस दोहराव द्वारा बंदा अपने खुले एवं छुपे तथा छोटे एवं बड़े गुनाहों का स्मरण भी करता है। यही वह हिकमत है, जिसे सामने रखकर अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने संक्षेपण के बाद विस्तार से काम लिया है। अतः इन्सान को चाहिए कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से वर्णित दुआओं की पाबंदी करे, जो कि सबसे अधिक सारगर्भित एवं सबसे अधिक लाभकारी हैं।

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