वर्गीकरण:
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بنِ مَسْعُودٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«لَيْسَ مِنَّا مَنْ لَطَمَ الخُدُودَ، وَشَقَّ الجُيُوبَ، وَدَعَا بِدَعْوَى الجَاهِلِيَّةِ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हुए कहते हैंः "वह व्यक्ति हममें से नहीं, जो गाल पीटे, गरेबान फाड़े और जाहिलियत की पुकार पुकारे।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह ने जो दिया, वह उसी का है और उसने जो लिया, वह भी उसी का है। उसके देने और लेने दोनों में संपूर्ण हिकमत निहित है। इसपर एतराज़ करने वाला दरअसल अल्लाह की नियति एवं निर्णय पर एतराज़ करता है, जिसका हर फ़ैसला मसलहत एवं हिकमत का जीता जागता सबूत तथा न्याय एवं सुधार का आधार होता है। यही कारण है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया है कि जिसने अल्लाह के निर्णय पर असंतुष्टि व्यक्त की उसके लिए यह चेतावनी है, जो यह बताती है कि यह महा पाप है, ताकि लोग उससे सावधान एवं दूर रहें।

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