عَنْ عَائِشَةَ أُمِّ المؤْمنينَ رَضيَ اللهُ عنها قَالَتْ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي مَرَضِهِ الَّذِي لَمْ يَقُمْ مِنْهُ:
«لَعَنَ اللهُ الْيَهُودَ وَالنَّصَارَى، اتَّخَذُوا قُبُورَ أَنْبِيَائِهِمْ مَسَاجِدَ» قَالَتْ: فَلَوْلَا ذَاكَ أُبْرِزَ قَبْرُهُ، غَيْرَ أَنَّهُ خُشِيَ أَنْ يُتَّخَذَ مَسْجِدًا.
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح مسلم: 529]
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मुसलमानों की माता आइशा -रज़ियल्लाहु अनहा- का वर्णन है, वह कहती हैं : अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उस बीमारी के दौरान, जिससे आप ठीक न हो सके, फ़रमाया :
"यहूदियों तथा ईसाइयों पर अल्लाह की धिक्कार हो। उन लोगों ने नबियों की क़ब्रों को मस्जिद बना लिया।" वह कहती हैं : यदि ऐसा न होता, तो आपको बाहर दफ़न किया जाता। किन्तु यह भय लगा रहा कि कहीं आपकी क़ब्र को मस्जिद न बना लिया जाए।
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 529]
मुसलमानों की माता आइशा -रज़ियल्लाहु अनहा- बताती हैं कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अपनी उस बीमारी में, जो विकट रूप धारण कर चुकी थी और जिसमें आपकी मृत्यु हो गई, फ़रमाया : अल्लाह की धिक्कार हो यहूदियों एवं ईसाइयों पर तथा अल्लाह उन्हें अपनी दया से दूर रखे, क्योंकि उन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को मस्जिद बना लिया। यहाँ यह याद रहे कि मस्जिद बनाने का मतलब एक तो क़ब्र के ऊपर मस्जिद का निर्माण कर लेना है और दूसरा उनके पास या उनकी ओर मुँह करके नमाज़ पढ़ना है। इसके बाद आइशा -रज़ियल्लाहु अनहा- ने कहा : यदि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस तरह से मना एवं सावधान न किया होता और सहाबा को इस बात की आशंका न होती कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की क़ब्र के साथ भी वही कुछ हो सकता है, जो यहूदियों एवं ईसाइयों ने अपने नबियों की क़ब्रों के साथ किया, तो आपको बाहर दफ़न किया जाता।