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عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللهُ عنه سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ:
«قَالَ اللهُ تَعَالَى: قَسَمْتُ الصَّلَاةَ بَيْنِي وَبَيْنَ عَبْدِي نِصْفَيْنِ، وَلِعَبْدِي مَا سَأَلَ، فَإِذَا قَالَ الْعَبْدُ: {الْحَمْدُ لِلهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ}، قَالَ اللهُ تَعَالَى: حَمِدَنِي عَبْدِي، وَإِذَا قَالَ: {الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ}، قَالَ اللهُ تَعَالَى: أَثْنَى عَلَيَّ عَبْدِي، وَإِذَا قَالَ: {مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ}، قَالَ: مَجَّدَنِي عَبْدِي، -وَقَالَ مَرَّةً: فَوَّضَ إِلَيَّ عَبْدِي-، فَإِذَا قَالَ: {إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ}، قَالَ: هَذَا بَيْنِي وَبَيْنَ عَبْدِي وَلِعَبْدِي مَا سَأَلَ، فَإِذَا قَالَ: {اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ، صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلا الضَّالِّينَ}، قَالَ: هَذَا لِعَبْدِي وَلِعَبْدِي مَا سَأَلَ».

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 395]
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अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं कि मैैंनेे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना है :
"उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है : मैंने नमाज़ को अपने तथा अपने बंदे के बीच आधा-आधा बाँट दिया है, तथा मेरे बंदे के लिए वह सब कुछ है, जो वह माँगे। जब बंदा {الْحَمْدُ لِلهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ} (हर प्रकार की प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जो सारे संसारों का रब है।) कहता है, तो उच्च एवं महान अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने मेरी प्रशंसा की। जब वह {الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ} (जो अत्यंत दयावान्, असीम दया वाला है।) कहता है, तो उच्च एवं महान अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने मेरी तारीफ़ की। जब बंदा {مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ} (जो बदले के दिन का मालिक है।) कहता है, तो अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने मेरी बड़ाई बयान की है - कभी-कभी कहता है : मेरे बंदे ने अपने सारे कामों को मेरे हवाले कर दिया है।- जब बंदा {إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ} (ऐ अल्लाह! हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से सहायता माँगते हैं। ) कहता है, तो अल्लाह कहता है कि यह मेरे तथा मेरे बंदे के बीच है और मेरे बंदे के लिए वह सब कुछ है, जो वह माँगे। फिर जब बंदा {اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ، صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلا الضَّالِّينَ} (हमें सीधे मार्ग पर चला। उन लोगों का मार्ग, जिनपर तूने अनुग्रह किया। उनका नहीं, जिनपर तेरा प्रकोप हुआ और न ही उनका, जो गुमराह हैं।) कहता है, तो अल्लाह कहता है कि यह मेरे लिए है और मेरे बंदे के लिए वह सब कुछ है, जो वह माँगे।"

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 395]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया है कि उच्च एवं महान अल्लाह ने हदीस-ए-क़ुदसी में कहा है : मैंने नमाज़ में सूरा फ़ातिहा को अपने तथा अपने बंदे के बीच आधा-आधा बाँट दिया है। आधा मेरे लिए है और आधा उसके लिए है।
उसका प्रथम आधा भाग अल्लाह की तारीफ़, प्रशंसा और बड़ाई का बयान है। उसे पढ़ने पर मैं बंदे को उत्तम प्रतिफल देता हूँ।
जबकि उसका दूसरा आधा भाग अनुनय-विनय एवं दुआ है। मैं इसे बंदे के लिए ग्रहण करता हूँ और उसे वह सब कुछ देता हूँ, जो वह माँगे।
जब नमाज़ पढ़ रहा व्यक्ति {الْحَمْدُ لِلهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ} (हर प्रकार की प्रशंसा उस अल्लाह के लिए है, जो सारे संसारों का रब है।) कहता है, तो उच्च एवं महान अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने मेरी प्रशंसा की। जब वह {الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ} (जो अत्यंत दयावान्, असीम दया वाला है।) कहता है, तो अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने मेरी तारीफ़ की और इस बात का एतराफ़ किया कि मैंने अपनी सृष्टि पर हर प्रकार का उपकार किया है। जब बंदा {مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ} (जो बदले के दिन का मालिक है।) कहता है, तो अल्लाह कहता है कि मेरे बंदे ने मेरे प्रभुत्व का गुण-गान किया। और यह बहुत बड़ा सम्मान है।
जब बंदा {إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ} ((ऐ अल्लाह!) हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से सहायता माँगते हैं। ) कहता है, तो अल्लाह कहता है कि यह मेरे तथा मेरे बंदे के बीच है।
इस आयत का पहला आधा भाग यानी {إِيَّاكَ نَعْبُدُ} अल्लाह के लिए है। यह दरअसल अल्लाह के एकमात्र पूज्य होने का एतराफ़ है और इसी पर प्रथम आधा भाग समाप्त हो जाता है।
आयत का दूसरा भाग, {إياك نستعين} बंदे के लिए है, जिसमें अल्लाह से सहायता मांगी गई है। और अल्लाह ने सहायता करने का वादा किया है।
फिर जब बंदा {اهدنا الصراط المستقيم * صراط الذين أنعمت عليهم غير المغضوب عليهم ولا الضالين} कहता है, तो अल्लाह कहता है : यह मेरे बंदे की ओर से अनुनय-विनय तथा दुआ है और मेरे बंदे के लिए वही है, जो उसने माँगा और मैंने उसकी दुआ सुन ली।

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हदीस का संदेश

  1. सूरा फ़ातिहा का महत्व कि अल्लाह ने उसे अल-सलात यानी नमाज़ कहा है।
  2. अपने बंदे पर अल्लाह के अनुग्रह का वर्णन कि अपनी प्रशंसा करने के कारण बंदे की तारीफ़ करता है और उससे इस बात का वादा करता है कि वह उसे वह सब कुछ देगा, जो उसने माँगा।
  3. इस पवित्र सूरा में अल्लाह की प्रशंसा है, दोबारा उठाए जाने का वर्णन है, अल्लाह से दुआ है, विशुद्ध रूप से उसी की इबादत करने की बात है, सीधा रास्ता दिखाने का आग्रह है और साथ ही इसमें ग़लत रास्तों पर चलने से सावधान किया गया है।
  4. सूरा फ़ातिहा पढ़ते समय नमाज़ी अगर इस हदीस को अपने मन में रखे, तो नमाज़ में उसकी विनयशीलता बढ़ जाती है।
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