عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ إِذَا رَجَعَ إِلَى أَهْلِهِ أَنْ يَجِدَ فِيهِ ثَلَاثَ خَلِفَاتٍ عِظَامٍ سِمَانٍ؟» قُلْنَا: نَعَمْ. قَالَ: «فَثَلَاثُ آيَاتٍ يَقْرَأُ بِهِنَّ أَحَدُكُمْ فِي صَلَاتِهِ خَيْرٌ لَهُ مِنْ ثَلَاثِ خَلِفَاتٍ عِظَامٍ سِمَانٍ».
[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 802]
المزيــد ...
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु से वर्णित है, उन्होंने कहा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"क्या तुममें से किसी को यह पसंद है कि जब वह अपने परिवार की ओर लौटे, तो वहाँ तीन बड़ी-बड़ी और मोटी-मोटी गाभिन ऊँटनियाँ पाए?" हमने कहा : अवश्य ही। आपने कहा : "अपनी नमाज़ में तुममें से किसी का तीन आयतें पढ़ना, उसके लिए तीन बड़ी-बड़ी और मोटी-मोटी गाभिन ऊँटनियों से बेहतर है।"
[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 802]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि नमाज़ में तीन आयतों का पढ़ना इस बात से उत्तम है कि आदमी तीन मोटी-मोटी और बड़ी-बड़ी गाभिन ऊँटनियाँ अपने घर में पाए।