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عَنِ ابْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:
«لاَ يَنْظُرُ اللَّهُ إِلَى مَنْ جَرَّ ثَوْبَهُ خُيَلاَءَ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 5783]
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अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अनहुमा- का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है :
"अल्लाह उस व्यक्ति की ओर नहीं देखेगा, जो अभिमान के कारण अपना कपड़ा लटकाकर चलता हो।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 5783]

व्याख्या

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने अभिमान के तौर पर कपड़े या लुंगी को टखनों के नीचे लटकाए रखने से सावधान किया है और बताया है कि ऐसा करने वाला भयानक चेतावनी का हक़दार है कि अल्लाह क़यामत के दिन उसपर दया की नज़र नहीं डालेगा।

हदीस का संदेश

  1. हदीस में उल्लिखित शब्द "الثوب" (वस्त्र) में पायजामा और लुंगी जैसे सभी कपड़े शामिल हैं, जो शरीर के निचले हिस्से को ढकते हैं।
  2. टखनों से नीचे कपड़े लटकाने की मनाही सिर्फ़ पुरुषों के लिए है। नववी कहते हैं : महिलाओं के लिए कपड़े लटकाने की अनुमति पर विद्वानों में आम सहमति है। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की एक प्रामाणिक हदीस में उन्हें एक हाथ के बराबर कपड़े लटकाने की अनुमति दी गई है।
  3. इब्न-ए-बाज़ कहते हैं : "आम हदीसों के आधार पर पुरुषों के लिए लटकते हुए कपड़े पहनना वर्जित और हराम है। लेकिन इसकी सज़ा ज़रूरी नहीं कि एक जैसी ही हो। यह अलग-अलग हो सकती है। क्योंकि जो घमंड से लटकाता है, वह और जो घमंड के बिना लटकाता है, वह एक जैसे नहीं हो सकते।"
  4. इब्न-ए-बाज़ कहते हैं : महिला के पूरे शरीर को छुपाना ज़रूरी है। अतः उसके लिए एक बित्ता लटकाने में कोई हर्ज नहीं है। अगर काफ़ी न हो, तो टखनों के नीचे एक हाथ लटका लेगी।
  5. क़ाज़ी कहते हैं : उलेमा ने कहा है : ज़रूरत एवं आदत के अधिक लम्बा-चौड़ा हर वस्त्र नापसंदीदा है।
  6. नववी कहते हैं : वैसे तो कमीज़ एवं लुंगी के किनारे को आधी पिंडली तक रखना मुसतहब है। लेकिन, पिंडली एवं टखनों के बीच कहीं भी रखने में कोई हर्ज नहीं है। अगर उससे नीचे रखा जाता है, तो शरीर का वह भाग आग में दाख़िल होगा। इस तरह आधी पिंडली पर रखना मुसतहब, उससे नीचे टखनों तक रखना बिना कराहत के जायज़ और टखनों के नीचे उतारना मना है।
  7. इब्न-ए-उसैमीन कहते हैं : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के शब्द "لا ينظر الله إليه" का अर्थ है : अल्लाह उसकी ओर दया एवं अनुग्रह की नज़र से नहीं देखेगा। यहाँ मुराद आम देखना नहीं है। क्योंकि अल्लाह की नज़र से कोई चीज़ छुपी और ओझल नहीं रहती। मतलब बस इतना है कि अल्लाह दया एवं अनुग्रह की नज़र से नहीं देखता।
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