عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرِو بْنِ الْعَاصِ رضي الله عنهما قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«إِنَّ الْإِيمَانَ لَيَخْلَقُ فِي جَوْفِ أَحَدِكُمْ كَمَا يَخْلَقُ الثَّوْبُ الْخَلِقُ، فَاسْأَلُوا اللَّهَ أَنْ يُجَدِّدَ الْإِيمَانَ فِي قُلُوبِكُمْ».
[صحيح] - [رواه الحاكم والطبراني]
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अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है, उन्होंने कहा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
"ईमान तुम्हारे दिल में उसी तरह पुराना हो जाता है, जिस तरह पुराना कपड़ा जर्जर हो जाता है। इसलिए अल्लाह से दुआ करो कि तुम्हारे दिलों में ईमान को नया कर दे।"
सह़ीह़ - इसे ह़ाकिम ने रिवायत किया है।
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि ईमान एक मुसलमान व्यक्ति के दिल में उसी तरह पुराना और कमज़ोर हो जाता है, जिस तरह एक नया कपड़ा लंबे समय तक इस्तेमाल करने से जर्जर हो जाता है। इन्सान का ईमान इबादत में कोताही, गुनाहों में संलिप्तता और आकांक्षाओं के पीछे भागने के कारण कमज़ोर होता है। अतः अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने निर्देश दिया है कि हम अल्लाह से दुआ करें कि हमें अनिवार्य शरई कार्यों को करने और कसरत से ज़िक्र एवं क्षमा याचना में लगे होने का सुयोग प्रदान करे, ताकि हमारा ईमान नया हो जाए।