عن أنس رضي الله عنه أن النبي صلى الله عليه وسلم قال: «جَاهِدُوا المشركين بأموالكم وأنفسكم وألسنتكم».
[صحيح] - [رواه أبو داود والدارمي والنسائي وأحمد]
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अनस (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "मुश्रिकों से अपने धन, जान तथा ज़बान द्वारा युद्ध करो।"
[सह़ीह़] - [इसे नसाई ने रिवायत किया है। - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है। - इसे दारिमी ने रिवायत किया है।]
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मोमिनों को जिहाद का आदेश दिया है, जो समकालीन शासक की निगरानी में, एक ही मोमिन झंडे के नीचे और अल्लाह के धर्म का वर्चस्व स्थापित करने के लिए होता है, सांसारिक उद्देश्यों के लिए नहीं। जिहाद निम्नलिखित चीज़ों द्वारा किया जाता है : धन : उसे हथियार खरीदने तथा सिपाहियों को तैयार करने आदि के लिए खर्च किया जाता है। प्राण : सामर्थ्य एवं योग्यता रखने वालों को युद्ध में शरीक होना होता है और यही असल जिहाद है। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "और अपने धनों तथा प्राणों से अल्लाह की राह में जिहाद करो।" ज़बान : ज़बान से जिहाद यह है कि अल्लाह के धर्म की ओर लोगों को बुलाया जाए, उसे फैलाया जाए, उसका बचाव किया जाए, अधर्मियों से बहस और उनका खंडन किया जाए, मीडिया के हर प्लेटफ़ॉर्म से उसका प्रचार-प्रसार किया जाए, ताकि अल्लाह के धर्म से दुश्मनी रखने वालों पर प्रमाण स्थापित हो जाए। इसी तरह युद्ध के समय ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ निकाली जाए और दुश्मन को डाँटा एवं फटकारा जाए और इसी तरह हर वह काम किया जाए, जिससे दुश्मन को चोट पहुँचती हो। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "तथा किसी शत्रु से वह कोई सफलता प्राप्त नहीं करते हैं, परन्तु उनके लिए एक सत्कर्म लिख दिया जाता है।" इसी तरह जिहाद की प्रेरणा देने वाले ख़ुतबे देना और इस प्रकार के शेर पढ़ना भी इसमें शामिल है। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने कहा है : "तुम अपने शेरों (कविताओं) के माध्यम से क़ुरैश की बुराई करो, क्योंकि उनपर इसका आघात तीर के आघात से भी अधिक कठोर होता है।"