عن علي - رضي الله عنه-: أن مُكَاتَبًا جاءه فقال: إني عَجَزْتُ عن كتابتي فَأَعِنِّي، قال: ألا أعلمك كلمات عَلَّمَنِيهِنَّ رسولُ الله صلى الله عليه وسلم لو كان عليك مثلَ جبلٍ دَيْنًا أَدَّاهُ الله عنك؟ قل: «اللهم اكْفِنِي بحلالك عن حرامك، وأَغْنِنِي بفضلك عَمَّنْ سِوَاكَ».
[حسن] - [رواه الترمذي وأحمد]
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अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि उनके पास एक दास आया, जिसका अपने मालिक से यह उनुबंध था कि वह उसे क़िस्तवार कुछ धन देकर ख़ुद को मुक्त कर लेगा। वह कहने लगा कि मैं निर्धारित धनराशि अदा करने से विवश हो चुका हूँ। अतः आप मेरी सहायता करें। यह सुन अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने फ़रमाया : क्या मैं तुम्हें कुछ शब्द न सिखा दूँ, जो अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने मुझे सिखाए थे कि यदि तुम्हारे ऊपर पहाड़ के बराबर भी क़र्ज़ हो, तो उसे अल्लाह अदा कर दे? तुम कहोः ऐ अल्लाह, मुझे हलाल देकर हराम से बचा ले और मुझे अपने अनुग्रह से अपने सिवा दूसरों से बेनियाज़ कर दे।
ह़सन - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

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