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عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ رَضيَ اللهُ عنهما أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَقُولُ:
«اللهُمَّ لَكَ أَسْلَمْتُ، وَبِكَ آمَنْتُ، وَعَلَيْكَ تَوَكَّلْتُ، وَإِلَيْكَ أَنَبْتُ، وَبِكَ خَاصَمْتُ، اللهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِعِزَّتِكَ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ أَنْ تُضِلَّنِي، أَنْتَ الْحَيُّ الَّذِي لَا يَمُوتُ، وَالْجِنُّ وَالْإِنْسُ يَمُوتُونَ».

[صحيح] - [متفق عليه، وهذا لفظ مسلم ورواه البخاري مختصرًا] - [صحيح مسلم: 2717]
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अब्दुल्लाह बिन अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है :
“ऐ अल्लाह! मैंने अपने आपको तेरे सामने समर्पित कर दिया, तुझपर ईमान लाया, तुझपर भरोसा किया, तेरी ओर लौटा और तेरी मदद से दुश्मनों से झगड़ा किया। ऐ अल्लाह! मैं तेरे प्रभुत्व की शरण में आता हूँ कि तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, इस बात से कि तू मुझे गुमराह करे। तू जीवंत है, जिसे कभी मौत नहीं आती, जबकि जिन्न और इन्सान मरते हैं।”

[सह़ीह़] - [متفق عليه وهذا لفظ مسلم ورواه البخاري مختصرًا] - [صحيح مسلم - 2717]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जो दुआएँ किया करते थे, उनमें से एक यह है : "اللهم لك أسلمت" यानी ऐ अल्लाह! मैं तेरा आज्ञाकारी बन गया, "وبك آمنت" तुझपर ईमान लाया, तेरी पुष्टि की और तेरे प्रति अपनी स्वीकारोक्ति व्यक्त की, "وعليك توكلت" तुझपर भरोसा किया और अपने सारे मामलात तेरे हवाले कर दिए, "وإليك أنبت" तेरी ओर लौट आया, "وبك خاصمت" तथा तेरी मदद से तेरे दुश्मनों से वाद-विवाद किया। "اللهم إني أعوذ بعزتك" ऐ अल्लाह! मैं तेरे सम्मान, शक्ति और प्रभुत्व के शरण में आता हूँ, "لا إله إلا أنت" कि तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है, "أن تضلني" इस बात से कि तू मुझे सत्य एवं अपनी प्रसन्नता के मार्ग से हटा दे। "أنت الحي الذي لا يموت" तू ही सदा जीवित रहने वाली हस्ती है, जिसे कभी मौत नहीं आ सकती और जो कभी फ़ना नहीं हो सकती। "والجن والإنس يموتون" जबकि जिन्नों एवं इन्सानों को मर जाना है।

हदीस का संदेश

  1. अल्लाह से कुछ माँगने से पहले उसकी स्तुति गान करना चाहिए।
  2. केवल अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए और उसी से सुरक्षा माँगनी चाहिए। क्योंकि वह हर एतबार से संपूर्ण एवं परिपूर्ण है। जबकि सारी सृष्टियाँ असमर्थ, विवश तथा नश्वर हैं। अतः उनपर भरोसा करने का कोई मतलब नहीं बनता।
  3. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पद्चिह्नों पर चलते हुए इन सारगर्भित शब्दों द्वारा दुआ करनी चाहिए, जो सच्चे ईमान एवं दृढ़ विश्वास को व्यक्त करते हैं।
  4. सिंधी कहते हैं : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के शब्द "أنت الحي" का अर्थ है : चूँकि तू जीवित है, इसलिए केवल तुझ ही से शरण माँगनी चाहिए। किसी और से नहीं।
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