عَنْ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ:
أَنَّهُ جَاءَ إِلَى الحَجَرِ الأَسْوَدِ فَقَبَّلَهُ، فَقَالَ: إِنِّي أَعْلَمُ أَنَّكَ حَجَرٌ، لاَ تَضُرُّ وَلاَ تَنْفَعُ، وَلَوْلاَ أَنِّي رَأَيْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُقَبِّلُكَ مَا قَبَّلْتُكَ.
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 1597]
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उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित है कि
वह हजर-ए-असवद के पास आए, उसे चूमा और फ़रमाया : मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तू एक पत्थर है। न हानि पहुँचा सकता है और न लाभ दे सकता है। यदि मैंने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को तुझे चूमते न देखा होता, तो मैं तुझे न चूमता।
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 1597]
अमीरुल मोमिनीन उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अनहु काबा के एक भाग में लगे, हजर-ए-असवद के पास आए, उसे चूमा और फिर कहा : मैं भली-भाँति जानता हूँ कि तुम एक पत्थर हो। न तो हानि पहुँचा सकते हो और न ही लाभ। यदि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तुम्हें चूमते हुए न देखा होता, तो मैं तुम्हें न चूमता।