عن عبد الله بن عباس رضي الله عنهما قال: «طَافَ النبيُّ -صلَّى الله عليه وسلَّم- فِي حَجَّةِ الوَدَاعِ على بَعِير، يَستَلِم الرُّكنَ بِمِحجَن».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अंहुमा) से रिवायत है, कहते हैंः नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हज्जतुल वदा के अवसर पर ऊँट पर सवार होकर तवाफ़ किया। आप मुड़े हुए किनारे वाली छड़ी से हजरे असवद को छू रहे थे।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हज्जतुल वदा के अवसर पर काबा का तवाफ़ किया। लोगों की बड़ी भीड़ थी। कुछ लोग आपको तवाफ़ करते हुए देखना चाहते थे और कुछ लोग आपको एक नज़र देखने के लिए बेताब थे। इस तरह हर तरफ़ लोग ही लोग थे। ऐसे में आप अपनी उम्मत पर कृपा करते हुए और उनके बीच समानता का ध्यान रखते हुए ऊँट पर सवार होकर तवाफ़ करने लगे; ताकि सब लोग बराबर रूप से आप को देख सकें। आपके साथ एक छड़ी भी थी, जिसका एक सिरा मुड़ा हुआ था। आप उसीसे रुक्न को छू लेते और छड़ी को बोसा देते। जैसा कि इसी हदीस की मुस्लिम की रिवायत में है।

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