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عن ابْنِ عُمَرَ رَضيَ اللهُ عنهُما قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«أَيُّمَا امْرِئٍ قَالَ لِأَخِيهِ: يَا كَافِرُ، فَقَدْ بَاءَ بِهَا أَحَدُهُمَا، إِنْ كَانَ كَمَا قَالَ، وَإِلَّا رَجَعَتْ عَلَيْهِ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح مسلم: 60]
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अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अनहुमा- का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है :
"जिस व्यक्ति ने अपने भाई से 'ऐ काफ़िर' कहा, उसके द्वारा प्रयोग किए गए इस शब्द का हक़दार उन दोनों में से एक बन गया। अगर उसकी बात सही है, तो ठीक है। अगर सही नहीं है, तो उसकी कही हुई बात उसी की ओर लौट आएगी।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 60]

व्याख्या

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस बात से सावधान किया है कि कोई मुसलमान अपने भाई को 'ऐ काफ़िर' कहे। क्योंकि ऐसा कहने पर इस शब्द का हक़दार दोनों में से एक बन जाता है। अगर सामने वाला व्यक्ति इस शब्द का हक़दार है, तो ठीक है। अगर हक़दार नहीं है, तो यह शब्द ख़ुद कहने वाले की ओर लौट जाएगा।

हदीस का संदेश

  1. इस हदीस में एक मुसलमान को इस बात से सावधान किया गया है कि वह अपने भाई को कुफ़्र एवं फ़िस्क़ आदि ऐसे विशेषणों से विशेषित न करे, जो उसके अंदर मौजूद न हों।
  2. इस प्रकार की बुरी बात सावधान करना। अपने भाई को इस तरह की बात कहने वाला बड़े ख़तरे में है। इसलिए, अपनी ज़बान पर काबू रखना चाहिए और पूरी समझदारी से ही उसे खोलना चाहिए।
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