وعن ابن عمر رضي الله عنهما عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: «أحْفُوا الشَّوَارِبَ وأَعْفُوا اللِّحَى».
[صحيح] - [متفق عليه، وهذا لفظ مسلم]
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अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से रिवायत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "मूँछें कतरवाओ और दाढ़ी बढ़ाओ।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है और शब्द मुस्लिम के हैं।

व्याख्या

हदीस का अर्थ यह है कि प्रत्येक मुस्लिम व्यक्ति को आदेश दिया गया है कि वह अपनी मूँछें कतरवाए और उन्हें चालीस से अधिक दिनों तक न छोड़े रखे, क्योंकि सहीह मुस्लिम में अनस (रज़ियल्लाहु अनहु) से वर्णित हदीस में आया है, वे कहते हैं कि हमारे लिए मूँछें छोटी करने, नाखून तराशने, बगल के बाल उखेड़ने और नाभि के नीचे के बालों को साफ करने का समय निर्धारित कर दिया गया था। हमें आदेश दिया गया था कि हम उन्हें चालीस से अधिक दिनों तक न छोड़े रखें। अबू दाऊद की एक रिवायत में है, वर्णनकर्ता कहता है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हमारे लिए चालीस दिनों में कम से कम एक बार नाभि के नीचे के बालों को साफ करने, नाखून तराशने और मूँछें छोटी करने की समय सीमा तय कर दी थी। अहमद और नसई में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का यह फ़रमान नकल हुआ है कि जो अपनी मूँछें छोटी नहीं करता, वह हममें से नहीं है। शैख अलबानी ने इस हदीस को "सहीह अल-जामे अस-सगीर व ज़ियादतुहु" (2/1113) में हदीस नंबर : 6533, के तहत सहीह करार दिया है। इससे मूँछों को छोटा करने की ताकीद और बढ़ जाती है। अब यह इंसान की मर्जी पर है, वह चाहे तो उन्हें इतना छोटा कर दे कि चमड़े की सफेदी नज़र आने लगे या फिर होठों पर आ जाने वाले और भोजन से सट जाने वाले भाग को कतर दे। इससे दाढ़ी बढ़ाने का आदेश भी प्राप्त होता है। शब्दज्ञानियों का कहना है कि दाढ़ी, चेहरे और दोनों दाढ़ों पर उगे बालों को कहते हैं अर्थात दाढ़ों और दोनों गालों पर उगे बालों को दाढ़ी कहते हैं। दाढ़ी को छोड़े रखने का मतलब यह है कि न उसे मूँड़ा जाए और ना ही काटा जाए। न कम न ज़्यादा। बल्कि जस की तस छोड़ दिया जाए। इसके लिए अरबी शब्द "إعفاء" प्रयोग हुआ है, जिसके मायने अधिक करने और बढ़ाने के हैं, जिसका तातपर्य यह है कि उसे छोड़ दिया जाए और उसे बढ़ाया जाए। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की बहुत सारी पवित्र हदीसें ऐसी आई हुई हैं, जिनमें विभिन्न शब्दों में दाढ़ी को बढ़ाने का स्पष्ट आदेश आया है। कभी "وفروا", कभी "أرخوا" और कभी "أعفوا" के शब्द आए हुए हैं जिनमें से हर एक के मायने बाकी रखने, बढ़ाने और उससे छेड़खानी न करने के हैं। दाढ़ी छोटी करने की आदत पारसियों में थी, इसलिए शरीयत ने उससे मना कर दिया, जैसा कि सहीह बुखारी में अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अनहुमा) से "خالفوا المشركين" अर्थात शिर्क करने वालों का विरोध करो, के शब्द आए हैं। इसमें मुश्रिकों का विरोध करने का जो आदेश आया है, उसका तात्पर्य यही है कि दाढ़ी को बढ़ाना वाजिब है, क्योंकि समरूपता की असल यही है कि वह हराम है और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का यह फ़रमान मौजूद है कि जिसने किसी दूसरे समुदाय के लोगों की समरूपता धारण की, वह उन्हीं में से है।

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हदीस का संदेश

  1. इससे साबित होता है कि दाढ़ी को साफ करना या उसे छोटा करना हराम और उसे बढ़ाना वाजिब है, जबकि मूछों को छोटा करना है।
  2. यह भी साबित होता है कि मूँछ को छोटा करना वाजिब और उसे छोड़े रखना नाजायज़ है। अब चाहे मूँछ के उन बालों को काटा जाए जो होठों के ऊपर आ जाएँ या फिर उसके तमाम बालों को काटकर छोटा कर दिया जाए।
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