عن عائشة رضي الله عنها مرفوعاً: «عَشْرٌ من الفِطْرة: قَصُّ الشَارب، وإعْفَاء اللِّحْية، والسِّواك، وَاسْتِنْشَاقُ الماء، وقص الأظْفَار، وغَسْل البَرَاجِم، ونَتْف الإبْط، وحلق العَانة، وانْتِقَاصُ الماء» قال الراوي: ونَسِيْتُ العاشرة إلا أن تكون المَضْمَضَة. قال وكِيع - وهو أحد رواته - انْتِقَاص الماء: يعني الاسْتِنْجَاء.
[صحيح] - [رواه مسلم]
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आइशा- रज़ियल्लाहु अन्हा- का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "दस कार्य प्राकृतिक हैं; मूँछ काटना, दाढ़ी बढ़ाना, मिसवाक करना, नाक में पानी चढ़ाना, नाखून काटना, जोड़ों को धोना, बगल के बाल उखेड़ना, पेड़ू के बाल साफ़ करना और पानी से इस्तिंजा अर्थात पेशाब एवं शोच करने के बाद सफाई, करना।" वर्णनकर्ता कहते हैं कि मैं दसवाँ कार्य भूल गया, परन्तु यह कि वह कु्ल्ली करना हो सकता है। इस हदीस के एक वर्णनकर्ता वकी ने 'انْتِقَاص الماء' का अर्थ इस्तिंजा बताया है।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस में आइशा -रज़ियल्लाहु अनहा- ने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के हवाले से मानव प्रकृति से जुड़ी हुई कुछ बातें बयान की हैं। दरअसल "प्रकृति" से मुराद इनसान की वह संरचना है, जो अल्लाह की बनाई हुई है और जो शुभ एवं मंगल हुआ करती है। याद रहे कि यहाँ मुराद बिगड़ी हुई प्रकृति नहीं, बल्कि स्वच्छ प्रकृति है। क्योंकि बिगड़ी हुई प्रकृति का कोई एतबार नहीं है। अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का फ़रमान है : "हर जन्म लेने वाला बच्चा मूल प्रकृति पर जन्म लेता है। फिर उसके माता-पिता उसे यहूदी, ईसाई या मजूसी बना देते हैं।" इनमें से पहली चीज़ है "मूँछ काटना" कि होंठ दिखता हो। इसमें स्वच्छता भी है और नाक से निकलने वाली चीज़ों से बचाव भी। क्योंकि मूँछ के बाल जब होंठ पर लटकने लगते हैं, तो उससे खाने-पीने की चीज़ें लग जाती हैं। इसी तरह मूँछ बढ़ाना दरअसल अल्लाह की संरचना को बिगाड़ना भी है। यह सही है कि कुछ लोग इसे अच्छा भी समझते हैं, लेकिन इस प्रकार के लोग किसी गिनती में नहीं आते। अतः मुसलमान को अपनी मूँछ को काटते अथवा मूँड़ते रहना चाहिए और चालीस दिन से अधिक समय तक रहने नहीं देना चाहिए। क्योंकि अनस -रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णित सहीह मुस्लिम की एक रिवायत में है : "हमारे लिए मूँछ तथा नाखून काटने, बगल के बाल उखाड़ने और पेड़ू के बाल साफ़ करने का समय निर्धारित कर दिया गया है कि हम चालीस दिन से अधिक न छोड़ें।" "दाढ़ी बढ़ाना" दाढ़ी उन बालों को कहते हैं, जो ठुड्डी एवं दोनों दाढ़ों पर उगते हैं। यहाँ बढ़ाने से आशय यह है कि उन्हें पूरा का पूरा छोड़ दिया जाए। न मूँड़ा जाए और न काटा जाए। न कम न ज़्यादा। क्योंकि इस आशय को बताने के लिए प्रयुक्त अरबी शब्द "الإعفاء" अधिक करने तथा पूरा देने के मायने में आता है। अतः आपके शब्दों का अर्थ है, दाढ़ी को अधिक करो और पूरा रहने दो। जैसा कि अल्लाह तआला का फ़रमान है : "حتى عَفَوا" यानी जब वे सुखी हो गए। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की बुहत-सी हदीसों में विभिन्न शब्दों द्वारा दाढ़ी बढ़ाने का आदेश आया है। कहीं "وفروا" का शब्द आया है, तो कहीं "أرخوا" का और कहीं "أعفوا" का। ये सारे शब्द दाढ़ी को बाक़ी रखने, बढ़ने देने और उससे छेड़छाड़ न करने को प्रमाणित करते हैं। अतः किसी मुसलमान के लिए दाढ़ी मूँड़ना किसी भी अवस्था में वैध नहीं है। अगर किसी ने यह कृत्य किया, तो उसने अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के तरीक़े की मुख़ालफ़त की, आपके आदेश की अवहेलना की और मुश्रिकों जैसा काम किया। "मिसवाक करना" यानी मिसवाक करना उन मानव प्रकृति का पता देने वाले कार्यों में से एक है, जिनकी प्रेरणा शरीयत ने दी है। क्योंकि मिसवाक मुँह स्वच्छ रखने वाली और अल्लाह को प्रसन्न रखने वाली चीज़ है। यही कारण है कि मिसवाक किसी भी समय की जा सकती है। लेकिन विशेष रूप से वज़ू के समय, नमाज़ से पहले, नींद से जागने के बाद, मुँह का स्वाद ख़राब होने पर और दाँतों के पीले हो जाने आदि पर उसपर अधिक ज़ोर दिया गया है। "नाक में पानी चढ़ाना" यानी नाक में पानी चढ़ाना भी मानव प्रकृति से निकले हुए कार्यों में से एक है। क्योंकि यह स्वच्छता प्राप्त करने और नाक के अंदर की उन गंदगियों को हटाने का साधन है, जो हानिकारक सिद्ध हो सकती हैं। नाक में पानी चढ़ाने का काम वज़ू के अंदर भी हो सकता है और उसके बाहर भी। जब भी नाक साफ़ करने की आवश्यकता महसूस हो, उसमें पानी चढ़ाइए और उसकी सफ़ाई कीजिए। इसकी ज़रूरत अलग-अलग लोगों को अलग-अलग हुआ करती है। कुछ लोगों को इसकी ज़रूरत केवल वज़ू के समय पड़ती है और कुछ लोगों को उसके अतिरिक्त भी बहुत बार पड़ती है। मानव प्रकृति से निकले हुए कार्यों में से एक कार्य कुल्ली करना भी है। क्योंकि मुँह एवं नाक में बहुत-से मैलकुचैल एकत्र होते रहते हैं। अतः उनकी सफ़ाई पर ध्यान देना भी मानव प्रकृति को मूर्त रूप देने वाले कार्यों में से एक है। "नाख़ून काटना" यानी नाखून काटना भी मानव प्रकृति को सामने लाने वाले कार्यों में से है। यहाँ मुराद हाथ एवं पाँव की उंगलियों के नाखून हैं। अतः उन्हें चालीस दिन से अधिक नहीं रहने देना चाहिए। चालीस दिन का प्रमाण वह हदीस है, जो इससे पहले गुज़र चुकी है। "जोड़ों को धोना" यानी उंगलियों के जोड़ों के अंदरूनी एवं बाहरी भागों को धोना। क्योंकि इन स्थानों के सिकुड़न एवं संकुचन के कारण उनके अंदर मैल जमा हो जाता है, जिसकी वजह से त्वचा तक पानी पहुँच नहीं पाता। लेकिन जब उनका ख़याल रखते हुए उन्हें रगड़ दिया जाए और उनपर दूसरी बार हाथ फेर दिया जाए, तो पानी पहुँच जाता है। अतः मानव प्रकृति का तक़ाज़ा है कि इनसान इन्हें धोने पर विशेष ध्यान दे। उंगलियों के जोड़ों के ही हुक्म में शरीर का हर वह अंग होगा, जिसमें मैल जमा हो जाता हो, जैसे कानों के छिद्र और रानों के भीतरी भाग, जो आम तौर पर छिपे रहते हैं। "बगल के बाल उखाड़ना" इन बालों को जड़ से उखाड़ फेंकने की बात इसलिए कही गई है कि ये बाल ऐसे स्थान में होते हैं, जहाँ अत्यधिक मात्रा में पसीना आता है, मैल जमा हो जाता है तथा बदबू पैदा हो जाती है। इन बालों को चालीसे दिन से अधिक रहने नहीं देना चाहिए। इसका प्रमाण अनस -रज़ियल्लाहु अनहु- की वह हदीस है, जो पीछे गुज़र चुकी है। अगर हो सके तो इन बालों को उखाड़ देना ही उत्तम है। लेकिन यदि उखाड़ना कठिन हो, तो मूंडने अथवा अनावश्यक बाल हटाने वाले क्रीम आदि का प्रयोग करने में कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि असल उद्देश्य उन्हें हटाना और उस स्थान को साफ़ करना है और इससे भी उद्देश्य पूरा हो जाता है। "पेड़ू के बाल साफ़ करना" यानी पेड़ू के बाल साफ़ करना भी मानव प्रकृति को उजागर करने वाले कार्यों में से एक है। ज्ञात हो कि पेड़ू के बाल से मुराद वह खुरदरे बाल हैं, जो पुरुष तथा स्त्री की अगली शर्मगाह के आसपास उगते हैं। इन बालों को साफ़ करते रहना चाहिए। इसके लिए इन्हें मूड़ा भी जा सकता है, उखाड़ा भी जा सकता है, काटा भी जा सकता है और आधुनिक आविष्कारों का प्रयोग भी किया जा सकता है। क्योंकि उद्देश्य सफ़ाई करना है और इन सारे तरीक़ों से उद्देश्य पूरा हो जाता है। इन बालों को भी अनस -रज़ियल्लाहु अनहु- की उक्त हदीस में आए निर्देश के कारण चालीस दिनों से अधिक छोड़ा नहीं जा सकता। फ़ितरत के कार्यों में से एक कार्य है "انْتِقَاصُ الماء"। इसका अर्थ इस्तिंजा बताया गया है, जिसकी पुष्टि अबू दाऊद एवं इब्न-ए-माजा में अम्मार बिन यासिर -रज़ियल्लाहु अनहुमा- से वर्णित उस हदीस से होती है, जिसमें है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "फ़ितरत के कार्य हैं, कुल्ली करना, नाक में पानी चढ़ाना... और इस्तिंजा करना।" याद रहे कि इस्तिंजा नाम है पेशाब अथवा पाखाना के रास्तों में से किसी रास्ते से निकलने वाली किसी चीज़ को पानी, पत्थर, कपड़ा एवं रूमाल आदि ऐसी चीज़ों से साफ़ करने का, जिनके अंदर साफ़ करने का गुण पाया जाता हो। वर्णनकर्ता कहते हैं कि मैं दसवीं वस्तु भूल गया। हो सकता है कि वह कुल्ली करना हो। यह दरअसल एक वर्णनकर्ता का संदेह है, जो यहाँ बयान किया गया है।

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