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عَنْ أَبِي مُوسَى الأَشْعَرِيِّ رضي الله عنه قَالَ:
أَتَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي رَهْطٍ مِنَ الأَشْعَرِيِّينَ أَسْتَحْمِلُهُ، فَقَالَ: «وَاللَّهِ لاَ أَحْمِلُكُمْ، مَا عِنْدِي مَا أَحْمِلُكُمْ» ثُمَّ لَبِثْنَا مَا شَاءَ اللَّهُ فَأُتِيَ بِإِبِلٍ، فَأَمَرَ لَنَا بِثَلاَثَةِ ذَوْدٍ، فَلَمَّا انْطَلَقْنَا قَالَ بَعْضُنَا لِبَعْضٍ: لاَ يُبَارِكُ اللَّهُ لَنَا، أَتَيْنَا رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَسْتَحْمِلُهُ فَحَلَفَ أَنْ لاَ يَحْمِلَنَا فَحَمَلَنَا، فَقَالَ أَبُو مُوسَى: فَأَتَيْنَا النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَذَكَرْنَا ذَلِكَ لَهُ، فَقَالَ: «مَا أَنَا حَمَلْتُكُمْ، بَلِ اللَّهُ حَمَلَكُمْ، إِنِّي وَاللَّهِ -إِنْ شَاءَ اللَّهُ- لا أَحْلِفُ عَلَى يَمِينٍ، فَأَرَى غَيْرَهَا خَيْرًا مِنْهَا، إِلَّا كَفَّرْتُ عَنْ يَمِينِي، وَأَتَيْتُ الَّذِي هُوَ خَيْرٌ».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 6718]
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अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु का वर्णन है, वह कहते हैं :
मैं अल्लाह के रसूल सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास अशअर क़बीले के कुछ लोगों के साथ पहुँचा। मैंने आपसे सवारी माँगी, तो आपने कहा : "अल्लाह की क़सम, मैं तुम्हें सवारी नहीं दे सकता और न मेरे पास कोई सवारी है, जो तुम्हें दे सकूँ।" फिर हम वहाँ जितनी देर अल्लाह ने चाहा, उतनी देर रुके। इसी बीच आपके पास कुछ ऊँट आ गए, तो आपने हमें तीन ऊँट देने का आदेश दिया। जब हम चल पड़े, तो हमारे बीच के कुछ लोगों ने अन्य लोगों से कहा : अल्लाह हमारे लिए बरकत न दे। हमने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आकर सवारी माँगी और आपने क़सम खाकर बताया कि हमें सवारी दे नहीं सकेंगे और फिर दे दी। अबू मूसा कहते हैं : चुनांचे हम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और आपके सामने इसका ज़िक्र किया, तो आपने कहा : "सवारी मैंने तुम्हें नहीं दी है। सवारी तो तुम्हें अल्लाह ने दी है। जहाँ तक मेरी बात है, तो अल्लाह की क़सम, अगर अल्लाह ने चाहा, तो जब भी मैं किसी बात की क़सम खाऊँगा और दूसरी बात को उससे बेहतर देखूँगा, तो अपनी क़सम का कफ़्फ़ारा अदा कर दूँगा और वही करूँगा, जो बेहतर हो।"

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 6718]

व्याख्या

अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अनहु बता रहे हैं कि वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए। उनके साथ उनके क़बीले के कुछ और लोग भी मौजूद थे। उद्देश्य यह था कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें सवारी के लिए कुछ ऊँट दें, ताकि वे जिहाद में शरीक हो सकें। लेकिन अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़सम खाकर बता दिया कि आप उन्हें सवारी नहीं दे सकते। आपके पास उन्हें देने के लिए सवारी की व्यवस्था नहीं है। अतः वापस हो गए। कुछ समय रुके। फिर अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास तीन ऊँट आए, तो उनकी ओर भेज दिए। यह देख अशअर क़बीले के उन लोगों ने एक-दूसरे से कहा : अल्लाह हमारे लिए इन ऊँटों में बरकत न दे। क्योंकि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें सवारी न देने की क़सम खा ली थी। अतः वह आपके पास आए और पूछा, तो आपने कहा : तुम्हें सवारी तो दरअसल अल्लाह ने दी है। क्योंकि प्रबंध उसी ने किया है और सुयोग उसी ने प्रदान किया है। मैं तो बस एक माध्यम हूँ कि यह काम मेरे द्वारा संपन्न हुआ। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आगे फ़रमाया : जहाँ तक मेरी बात है, तो अल्लाह की क़सम, जब भी मैं किसी काम के करने या न करने की क़सम खाऊँगा और बाद में देखूँगा कि मैंने जिस काम के करने या न करने की क़सम खाई थी, उससे बेहतर काम दूसरा है, तो क़सम खाए हुए काम को छोड़कर दूसरा काम, जो बेहतर है, उसे करूँगा और अपनी क़सम का कफ़्फ़ारा दे दूँगा।

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हदीस का संदेश

  1. किसी सूचना की पुष्टि के लिए, चाहे वह भविष्य काल से जुड़ी हुई ही क्यों न हो, क़सम के मुतालबे के बिना भी क़सम खाना जायज़ है।
  2. क़सम खाने के बाद "अगर अल्लाह ने चाहा" कहकर कुछ चीज़ों को क़सम के दायरे से बाहर रखना जायज़ है। कुछ चीज़ों को अलग करने का यह काम अगर क़सम के साथ ही कर दिया जाए, तो वह चीज़ें क़सम के दायरे के अंदर नहीं आएँगी।
  3. इस बात की प्रेरणा कि जब कोई व्यक्ति किसी चीज़ की क़सम खा ले और उसके बाद दूसरी चीज़ को उससे उत्तम देखे, अपनी क़सम तोड़ दे और उसका कफ़्फ़ारा अदा करे।
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