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عن عائشةُ -رضي اللهُ عنها- مرفوعًا: «تُقْطَعُ الْيَدُ فِي رُبْعِ دِينَارٍ فَصَاعِداً».
[صحيح] - [متفق عليه]
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आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करती हैं कि चोर का हाथ एक चौथाई दीनार या उससे अधिक चोरी करने पर काटा जाएगा।
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

अल्लाह ने मुसलमानों के लहू उनकी प्रतिष्ठा और धन की रक्षा प्रत्येक उन माध्यमों से की है, जो उपद्रवियों तथा अत्याचारियों को रोक सके। इसी कारण उसने चोर -जो हिफ़ाज़त से रखे हुए धन को छिपाकर ले ले- का दंड रखा है कि उसका वह हाथ काट लिया जाए, जिससे चोरी करता है, ताकि यह उसके पाप का कफ़्फ़ारा हो और स्वयं वह तथा दूसरे लोग भी गलत तरीक़ों से बाज़ आ जाएँ एवं शरई तथा सम्मानित तरीक़ों से धन कमाकर खाएँ। फलस्वरूप, काम भी अधिक होगा तथा लाभ भी अधिक होगा और इस तरह दुनिया भी आबाद होगी और लोगों को भी आदर मिलेगा। अल्लाह की हिकमत है कि उसने चोरी के कारण हाथ काटे जाने का निसाब -निर्दिष्ट परिमाण- तीन दिरहम अर्थात सोने के एक दीनार का चतुर्थांश रखा है, ताकि मुसलमानों के माल और उनका जीवन सुरक्षित रहे और शांति क़ायम रहे और लोग अपने धनों को कमाने तथा बढ़ाने के उद्देश्य से फैला सकें।

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