عَنْ أَبِي مُوسَى رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ:
«إِنَّ لِلْمُؤْمِنِ فِي الْجَنَّةِ لَخَيْمَةً مِنْ لُؤْلُؤَةٍ وَاحِدَةٍ مُجَوَّفَةٍ، طُولُهَا سِتُّونَ مِيلًا، لِلْمُؤْمِنِ فِيهَا أَهْلُونَ، يَطُوفُ عَلَيْهِمِ الْمُؤْمِنُ فَلَا يَرَى بَعْضُهُمْ بَعْضًا».
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح مسلم: 2838]
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अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हु अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया है :
"मोमिन के लिए जन्नत के अंदर एक खोखले मोती से बना एक तंबू होगा, जिसकी ऊँचाई साठ मील होगी। उसमें मोमिन की पत्नियाँ होंगी, जिनके पास वह आए-जाएगा और वह पत्नियाँ एक-दूसरे को देख नहीं सकेंगी।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 2838]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यहाँ जन्नत की कुछ नेमतों के बारे में बात की है। आपने बताया है कि जन्नत के अंदर मोमिन को एक बहुत बड़ा और विशाल ख़ेमा मिलेगा, जो अंदर से ख़ाली हीरे से बना होगा। आकाश में उसकी लंबाई और चौड़ाई 60 मील होगी। उसके चारों कोनों में कुछ पत्नियाँ होंगी, जो एक-दूसरे को देख नहीं पाएँगी। वह मोमिन उनके बीच घूमता रहेगा।