عَنْ شَدَّادِ بْنِ أَوْسٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«سَيِّدُ الِاسْتِغْفَارِ أَنْ تَقُولَ: اللَّهُمَّ أَنْتَ رَبِّي لاَ إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ، خَلَقْتَنِي وَأَنَا عَبْدُكَ، وَأَنَا عَلَى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ مَا اسْتَطَعْتُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ، أَبُوءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَيَّ، وَأَبُوءُ لَكَ بِذَنْبِي فَاغْفِرْ لِي، فَإِنَّهُ لاَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ» قَالَ: «وَمَنْ قَالَهَا مِنَ النَّهَارِ مُوقِنًا بِهَا، فَمَاتَ مِنْ يَوْمِهِ قَبْلَ أَنْ يُمْسِيَ، فَهُوَ مِنْ أَهْلِ الجَنَّةِ، وَمَنْ قَالَهَا مِنَ اللَّيْلِ وَهُوَ مُوقِنٌ بِهَا، فَمَاتَ قَبْلَ أَنْ يُصْبِحَ، فَهُوَ مِنْ أَهْلِ الجَنَّةِ».
[صحيح] - [رواه البخاري] - [صحيح البخاري: 6306]
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शद्दाद बिन औस रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
“सय्यदुल इस्तिग़फार (सर्वश्रेष्ठ क्षमायाचना) यह है कि बंदा इस प्रकार कहे : ऐ अल्लाह, तू ही मेरा रब है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। तू ने ही मेरी रचना की है और मैं तेरा बंदा हूँ। मैं तुझसे की हुई प्रतिज्ञा एवं वादे को हर संभव पूरा करने का प्रयत्न करूँगा। मैं अपने कर्म की बुराई से तेरी शरण चाहता हूँ। मैं तेरी ओर से दी जाने वाली नेमतों (अनुग्रहों) का तथा अपनी ओर से किए जाने वाले पापों का इक़रार करता हूँ। तू मुझे माफ कर दे, क्योंकि तेरे सिवा पापों को क्षमा करने वाला कोई नहीं।” आपने कहा : "जिसने इसे विश्वास के साथ दिन में कहा और उसी दिन शाम से पहले मर गया, वह जन्नतवासी है। और जिसने इसे विश्वास के साथ रात में कहा और सुबह होने से पहले मर गया, वह जन्नतवासी है।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 6306]
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बता रहे हैं कि क्षमा याचना के कुछ शब्द निर्धारित हैं और इसके सबसे उत्तम एवं महान शब्द यह हैं : "ऐ अल्लाह, तू ही मेरा रब है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। तू ने ही मेरी रचना की है और मैं तेरा बंदा हूँ। मैं तुझसे की हुई प्रतिज्ञा एवं वादे को हर संभव पूरा करने का प्रयत्न करूँगा। मैं अपने हर उस कृत्य से तेरी शरण चाहता हूँ, जिसके कारण मैं तेरी रहमत से दूर हो जाऊँ। मैं तेरी ओर से दी जाने वाली नेमतों (अनुग्रहों) का इक़रार करता हूँ तथा अपनी ओर से किए जाने वाले पापों को भी स्वीकार करता हूँ। अतः तू मुझे माफ कर दे, क्योंकि तेरे सिवा पापों को क्षमा करने वाला कोई नहीं।” इन शब्दों द्वारा बंदा अल्लाह के एक होने के साथ-साथ इस बात का इक़रार करता है कि अल्लाह उसका स्रष्टा और पूज्य है। उसका कोई साझी नहीं है। वह अल्लाह से किए हुए ईमान और आज्ञापालन के वादे पर जहाँ तक हो सकेगा, क़ायम रहेगा। क्योंकि बंदा जितनी भी इबादत कर ले, अल्लाह के तमाम आदेशों का पालन और उसकी नेमतों का शुक्रिया उस तरह नहीं कर सकता, जिस तरह किया जाना चाहिए। वह अल्लाह के यहाँ शरण लेता है और उसकी रस्सी को मज़बूती से थाम लेता है, क्योंकि बंदे को उनके द्वारा किए गिए बुरे कामों से शरण वही देता है। वह अल्लाह की दी हुई नेमतों का इक़रार भी करता है और अपने गुनाहों एवं अवज्ञाकारियों का एतराफ़ भी। इसके बाद बंदा अपने रब से दुआ करता है कि उसके गुनाहों पर पर्दा डाल दे, क्षमा, अनुग्रह एवं दया से काम लेते हुए उसे उसके गुनाहों के बुरे परिणामों से बचा ले। क्योंकि गुनाहों को क्षमा करने का काम सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह के सिवा कोई नहीं कर सकता। फिर आपने बताया कि यह सुबह-शाम के अज़कार में से है। जिसने इसे यक़ीन के साथ, इसके अर्थ को ज़ेहन में रखते हुए और इसपर विश्वास रखते दिन के आरंभ में यानी सूरज निकलने से ढलने तक के बीच कहा और फिर मर गया, वह जन्नत में प्रवेश करेगा। इसी तरह जिसने इसे रात में यानी सूरज डूबने के समय से फ़ज्र होने के समय के बीच कहा और सुबह होने से पहले मर गया, वह भी जन्नत में दाख़िल होगा।