عَنْ أَبِي عَبْدِ الرَّحْمَنِ السُّلَمي رحمه الله قَالَ:
حَدَّثَنَا مَنْ كَانَ يُقْرِئُنَا مِنْ أَصْحَابِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّهُمْ كَانُوا يَقْتَرِئُونَ مِنْ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَشْرَ آيَاتٍ، فَلَا يَأْخُذُونَ فِي الْعَشْرِ الْأُخْرَى حَتَّى يَعْلَمُوا مَا فِي هَذِهِ مِنَ الْعِلْمِ وَالْعَمَلِ، قَالُوا: فَعَلِمْنَا الْعِلْمَ وَالْعَمَلَ.
[حسن] - [رواه أحمد]
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अबू अब्दुर रहमान सुलमी कहते हैं :
हमें अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उन सहाबा ने बताया, जो हमें पढ़ाया करते थे कि वे अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दस आयतें पढ़ते और दूसरी दस आयतों को पढ़ना उस समय तक शुरू नहीं करते, जब तक उन दस आयतों के ज्ञान एवं अमल को सीख न लेते। सहाबा ने कहा : हमने ज्ञान और अमल दोनों सीखा।
ह़सन - इसे अह़मद ने रिवायत किया है।
सहाबा अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दस आयतें प्राप्त करते और दूसरी दस आयतें प्राप्त करना उस समय तक शुरू नहीं करते, जब तक पहली दस आयतों के ज्ञान को पूरी तरह सीख न लेते और उसपर अमल करने न लगते। इस तरह वे ज्ञान तथा अमल दोनों को एक साथ सीखते थे।