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عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رضي الله عنهما قال: قال رَسولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
«أَرْبَعٌ مَنْ كُنَّ فِيهِ كَانَ مُنَافِقًا، وَإِنْ كَانَتْ خَصْلَةٌ مِنْهُنَّ فِيهِ كَانَتْ فِيهِ خَصْلَةٌ مِنَ النِّفَاقِ حَتَّى يَدَعَهَا: مَنْ إِذَا حَدَّثَ كَذَبَ، وإِذَا وَعَدَ أَخْلَفَ، وإذَا خَاصَمَ فَجَرَ، وَإِذَا عَاهَدَ غَدَرَ».

[صحيح] - [رواه البخاري ومسلم] - [الأربعون النووية: 48]
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अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अनहुमा का वर्णन है, वह कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया :
“चार बातें ऐसी हैं कि जिस व्यक्ति के अंदर यह बातें होंगी, वह मुनाफ़िक़ होगा तथा यदि उसके अंदर उनमें से कोई एक बात होगी, तो उसके अंदर निफ़ाक़ की एक विशेषता होगी, यहाँ तक कि उसे छोड़ दे; जब बात करे तो झूठ बोले, जब वादा करे तो तोड़ दे, जब किसी से झगड़ा करे तो गाली बके और जब वचन दे तो धोखा दे।”

[सह़ीह़] - [رواه البخاري ومسلم] - [الأربعون النووية - 48]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने चार ऐसी बातों से सावधान किया है कि जब वो किसी मुसलमान के अंदर जमा हो जाएँ, तो वह उनके कारण मुनाफ़िक़ों के बहुत ज़्यादा समरूप हो जाता है। और यह तब होगा, जब ये अवगुण उसपर हावी हो जाएँ। अगर इनमें से कोई अवगुण बहुत कम पाया जाता हो, तो वह इसमें शामिल नहीं होगा। ये चार बातें हैं :
1- जब बात करे, तो जान-बूझकर झूठ बोले और सच बोलने से कन्नी काटे।
2- जब कोई वचन दे तो उसका पालन न करे और धोखा दे डाले।
3- जब कोई वादा करे, तो उसे पूरा न करे और उसके उलटा करे।
4- जब किसी के साथ झगड़ा करे, तो बड़े सख़्त अंदाज़ में झगड़ा करे। सही-ग़लत का ख़्याल न रखे, सही का खंडन करे, उसे ग़लत ठहराए और ग़लत तथा झूठ बोले।
क्योंकि निफ़ाक़ नाम है दिल में कुछ रखने तथा ज़ाहिर कुछ और करने का और यह गुण उक्त लोगों के अंदर पाया जा रहा है। यहाँ यह याद रहे कि उक्त अवगुण रखने वाले व्यक्ति का निफ़ाक़ दरअसल उस व्यक्ति के हक़ में होगा, जिसने उससे बात की, वादा किया, उसके पास अमानत रखी और झगड़ा किया। इस हदीस का मतलब यह नहीं है कि वह इस्लाम के संंबंध में मुनाफ़िक़ है, अतः मुसलमान होने का दिखावा करता है और अंदर कुफ़्र छुपाए रखता है। दूसरी बात यह याद रहे कि जिस व्यक्ति के अंदर इनमें से कोई एक अवगुण होगा, उसके अंदर निफ़ाक़ का एक विशेषण होगा, जब तक उसे छोड़ न दे।

हदीस का संदेश

  1. यहाँ निफ़ाक़ की कुछ निशानियाँ बयान कर दी गई हैं, ताकि उन में पड़ने से डराया और सावधान किया जा सके।
  2. इस हदीस का अर्थ यह है कि ये विशेषताएँ निफ़ाक़ की विशेषताएँ हैं और जिस व्यक्ति में ये विशेषताएँ होती हैं, वह इन विशेषताओं में मुनाफ़िक़ों जैसा होता है और उनके आचरण को धारण करता है। इसका मतलब यह नहीं कि वह ऐसा मुनाफ़िक़ है जो मुसलमान होने का दिखावा करता है और अपने दिल में कुफ़्र छुपाए रखता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह हदीस उस व्यक्ति पर लागू होती है जिसपर यह विशेषताएँ हावी हो जाती हैं और इनके प्रति लापरवाह होता है तथा इन्हें हल्के में लेता है। क्योंकि ऐसा व्यक्ति आमतौर पर बद-अक़ीदा भी होता है।
  3. ग़ज़ाली कहते हैं : वास्तव में, धार्मिकता तीन चीज़ों पर निर्भर करती है : शब्द, कार्य और इरादे। यहाँ, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने झूठ बोलने की बात कहकर वाणी में भ्रष्टाचार, विश्वासघात करने की बात कहकर कार्य में भ्रष्टाचार, तथा वादा तोड़ने की बात कहकर नीयत में भ्रष्टाचार की ओर इशारा किया है। क्योंकि वादा तोड़ना तभी गलत है जब वादा करते समय ही उसे पूरा न करने का इरादा कर लिया गया हो। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति किसी वादे को पूरा करना चाहता हो, लेकिन कोई बाधा उत्पन्न हो जाए और वह वादा पूरा करने में असमर्थ हो जाए, तो उसका यह कार्य निफ़ाक़ के दायरे में नहीं आएगा।
  4. निफ़ाक़ के दो प्रकार हैं : पहला अक़ीदे का निफ़ाक़ है, जो इन्सान को ईमान के दायरे से बाहर निकाल देता है। अक़ीदे का निफ़ाक़ नाम है बाहर से मुसलमान होने का दावा करने और अंदर कुफ़्र छुपाए रखने का। जबकि दूसरा अमल का निफ़ाक़ है, जो इन्सान को ईमान के दायरे से बाहर तो नहीं निकालता, लेकिन है कबीरा गुनाह।
  5. इब्न-ए-हजर कहते हैं : उलेमा का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि जो व्यक्ति अपने दिल से इस्लाम की पुष्टि करे और ज़बान से मुसलमान होने का दावा करे तथा इसके बावजूद ये कार्य करे, तो उसे काफ़िर नहीं माना जाएगा। उसे ऐसा मुनाफ़िक़ भी नहीं समझा जाएगा, जिसका सदा का ठिकाना जहन्नम हो।
  6. नववी कहते हैं : उलेमा का एक गिरोह कहता है : इससे मुराद अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दौर के मुनाफ़िक़ हैं, जिन्होंने मोमिन होने की बात कहकर झूठ बोला, दीन की अमानत उठाई और ख़यानत की, दीन पर क़ायम रहने और उसकी मदद करने का वादा करके उसे तोड़ डाला और अपने झगड़ों में बद-ज़बानी की।
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