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عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ: أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أُتِيَ بِلَحْمٍ فَرُفِعَ إِلَيْهِ الذِّرَاعُ، وَكَانَتْ تُعْجِبُهُ فَنَهَشَ مِنْهَا نَهْشَةً، ثُمَّ قَالَ:
«أَنَا سَيِّدُ النَّاسِ يَوْمَ القِيَامَةِ، وَهَلْ تَدْرُونَ مِمَّ ذَلِكَ؟ يَجْمَعُ اللَّهُ النَّاسَ الأَوَّلِينَ وَالآخِرِينَ فِي صَعِيدٍ وَاحِدٍ، يُسْمِعُهُمُ الدَّاعِي وَيَنْفُذُهُمُ البَصَرُ، وَتَدْنُو الشَّمْسُ، فَيَبْلُغُ النَّاسَ مِنَ الغَمِّ وَالكَرْبِ مَا لاَ يُطِيقُونَ وَلاَ يَحْتَمِلُونَ، فَيَقُولُ النَّاسُ: أَلاَ تَرَوْنَ مَا قَدْ بَلَغَكُمْ، أَلاَ تَنْظُرُونَ مَنْ يَشْفَعُ لَكُمْ إِلَى رَبِّكُمْ؟ فَيَقُولُ بَعْضُ النَّاسِ لِبَعْضٍ: عَلَيْكُمْ بِآدَمَ، فَيَأْتُونَ آدَمَ عَلَيْهِ السَّلاَمُ فَيَقُولُونَ لَهُ: أَنْتَ أَبُو البَشَرِ، خَلَقَكَ اللَّهُ بِيَدِهِ، وَنَفَخَ فِيكَ مِنْ رُوحِهِ، وَأَمَرَ المَلاَئِكَةَ فَسَجَدُوا لَكَ، اشْفَعْ لَنَا إِلَى رَبِّكَ، أَلاَ تَرَى إِلَى مَا نَحْنُ فِيهِ، أَلاَ تَرَى إِلَى مَا قَدْ بَلَغَنَا؟ فَيَقُولُ آدَمُ: إِنَّ رَبِّي قَدْ غَضِبَ اليَوْمَ غَضَبًا لَمْ يَغْضَبْ قَبْلَهُ مِثْلَهُ، وَلَنْ يَغْضَبَ بَعْدَهُ مِثْلَهُ، وَإِنَّهُ قَدْ نَهَانِي عَنِ الشَّجَرَةِ فَعَصَيْتُهُ، نَفْسِي نَفْسِي نَفْسِي، اذْهَبُوا إِلَى غَيْرِي، اذْهَبُوا إِلَى نُوحٍ، فَيَأْتُونَ نُوحًا فَيَقُولُونَ: يَا نُوحُ، إِنَّكَ أَنْتَ أَوَّلُ الرُّسُلِ إِلَى أَهْلِ الأَرْضِ، وَقَدْ سَمَّاكَ اللَّهُ عَبْدًا شَكُورًا، اشْفَعْ لَنَا إِلَى رَبِّكَ، أَلاَ تَرَى إِلَى مَا نَحْنُ فِيهِ؟ فَيَقُولُ: إِنَّ رَبِّي عَزَّ وَجَلَّ قَدْ غَضِبَ اليَوْمَ غَضَبًا لَمْ يَغْضَبْ قَبْلَهُ مِثْلَهُ، وَلَنْ يَغْضَبَ بَعْدَهُ مِثْلَهُ، وَإِنَّهُ قَدْ كَانَتْ لِي دَعْوَةٌ دَعَوْتُهَا عَلَى قَوْمِي، نَفْسِي نَفْسِي نَفْسِي، اذْهَبُوا إِلَى غَيْرِي، اذْهَبُوا إِلَى إِبْرَاهِيمَ، فَيَأْتُونَ إِبْرَاهِيمَ فَيَقُولُونَ: يَا إِبْرَاهِيمُ أَنْتَ نَبِيُّ اللَّهِ وَخَلِيلُهُ مِنْ أَهْلِ الأَرْضِ، اشْفَعْ لَنَا إِلَى رَبِّكَ أَلاَ تَرَى إِلَى مَا نَحْنُ فِيهِ، فَيَقُولُ لَهُمْ: إِنَّ رَبِّي قَدْ غَضِبَ اليَوْمَ غَضَبًا لَمْ يَغْضَبْ قَبْلَهُ مِثْلَهُ، وَلَنْ يَغْضَبَ بَعْدَهُ مِثْلَهُ، وَإِنِّي قَدْ كُنْتُ كَذَبْتُ ثَلاَثَ كَذِبَاتٍ، نَفْسِي نَفْسِي نَفْسِي، اذْهَبُوا إِلَى غَيْرِي، اذْهَبُوا إِلَى مُوسَى فَيَأْتُونَ، مُوسَى فَيَقُولُونَ: يَا مُوسَى أَنْتَ رَسُولُ اللَّهِ، فَضَّلَكَ اللَّهُ بِرِسَالَتِهِ وَبِكَلاَمِهِ عَلَى النَّاسِ، اشْفَعْ لَنَا إِلَى رَبِّكَ، أَلاَ تَرَى إِلَى مَا نَحْنُ فِيهِ؟ فَيَقُولُ: إِنَّ رَبِّي قَدْ غَضِبَ اليَوْمَ غَضَبًا لَمْ يَغْضَبْ قَبْلَهُ مِثْلَهُ، وَلَنْ يَغْضَبَ بَعْدَهُ مِثْلَهُ، وَإِنِّي قَدْ قَتَلْتُ نَفْسًا لَمْ أُومَرْ بِقَتْلِهَا، نَفْسِي نَفْسِي نَفْسِي، اذْهَبُوا إِلَى غَيْرِي، اذْهَبُوا إِلَى عِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ، فَيَأْتُونَ عِيسَى، فَيَقُولُونَ: يَا عِيسَى أَنْتَ رَسُولُ اللَّهِ، وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَى مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِنْهُ، وَكَلَّمْتَ النَّاسَ فِي المَهْدِ صَبِيًّا، اشْفَعْ لَنَا إِلَى رَبِّكَ أَلاَ تَرَى إِلَى مَا نَحْنُ فِيهِ؟ فَيَقُولُ عِيسَى: إِنَّ رَبِّي قَدْ غَضِبَ اليَوْمَ غَضَبًا لَمْ يَغْضَبْ قَبْلَهُ مِثْلَهُ قَطُّ، وَلَنْ يَغْضَبَ بَعْدَهُ مِثْلَهُ، وَلَمْ يَذْكُرْ ذَنْبًا، نَفْسِي نَفْسِي نَفْسِي اذْهَبُوا إِلَى غَيْرِي اذْهَبُوا إِلَى مُحَمَّدٍ، فَيَأْتُونَ مُحَمَّدًا فَيَقُولُونَ: يَا مُحَمَّدُ أَنْتَ رَسُولُ اللَّهِ وَخَاتِمُ الأَنْبِيَاءِ، وَقَدْ غَفَرَ اللَّهُ لَكَ مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ، اشْفَعْ لَنَا إِلَى رَبِّكَ أَلاَ تَرَى إِلَى مَا نَحْنُ فِيهِ، فَأَنْطَلِقُ فَآتِي تَحْتَ العَرْشِ، فَأَقَعُ سَاجِدًا لِرَبِّي عَزَّ وَجَلَّ، ثُمَّ يَفْتَحُ اللَّهُ عَلَيَّ مِنْ مَحَامِدِهِ وَحُسْنِ الثَّنَاءِ عَلَيْهِ شَيْئًا، لَمْ يَفْتَحْهُ عَلَى أَحَدٍ قَبْلِي، ثُمَّ يُقَالُ: يَا مُحَمَّدُ ارْفَعْ رَأْسَكَ سَلْ تُعْطَهْ، وَاشْفَعْ تُشَفَّعْ فَأَرْفَعُ رَأْسِي، فَأَقُولُ: أُمَّتِي يَا رَبِّ، أُمَّتِي يَا رَبِّ، أُمَّتِي يَا رَبِّ، فَيُقَالُ: يَا مُحَمَّدُ أَدْخِلْ مِنْ أُمَّتِكَ مَنْ لاَ حِسَابَ عَلَيْهِمْ مِنَ البَابِ الأَيْمَنِ مِنْ أَبْوَابِ الجَنَّةِ، وَهُمْ شُرَكَاءُ النَّاسِ فِيمَا سِوَى ذَلِكَ مِنَ الأَبْوَابِ، ثُمَّ قَالَ: وَالَّذِي نَفْسِي بِيَدِهِ، إِنَّ مَا بَيْنَ المِصْرَاعَيْنِ مِنْ مَصَارِيعِ الجَنَّةِ، كَمَا بَيْنَ مَكَّةَ وَحِمْيَرَ -أَوْ كَمَا بَيْنَ مَكَّةَ وَبُصْرَى-».

[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 4712]
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अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास मांस लाया गया और बाज़ू का मांस उठाकर आपके सामने रखा गया, क्योंकि बाज़ू का मांस आपको पसंद था। चुनांच आपने अपने दांत से काटकर एक बार खाया और उसके बाद फ़रमाया :
“क़यामत के दिन मैं लोगों का सरदार रहूँगा। क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों होगा? अल्लाह अगले तथा पिछले सब लोगों को एक बड़े तथा समतल मैदान में जमा करेगा, जहाँ आवाज़ देने वाले की आवाज़ सब को पहुँच सकेगी और देखने वाला सब को देख सकेगा और सूरज बहुत नज़दीक होगा। लोगों को असहनीय कष्ट एवं पीड़ा का सामना होगा। अतः, लोग आपस में कहेंगे : क्या तुम नहीं देखते कि कैसी तकलीफ़ में पड़ चुके हो? तुम किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश क्यों नहीं करते, जो तुम्हारे रब के सामने तुम्हारी सिफ़ाश कर सके? फिर आपस में एक-दूसरे से कहेंगे कि आदम -अलैहिस्सलाम- के पास चलो। अतः, वे आदम -अलैहिस्सलाम- के पास आएँगे और कहेंगे : आप इन्सानों के पिता हैं, अल्लाह ने आपको अपने हाथों से बनाया, फिर आपके अंदर रूह फूँकी, फरिश्तों को सजदा करने का आदेश दिया, तो उन्होंने आपको सजदा किया। आप हमारे लिए अपने रब के पास सिफ़ारिश कर दें। क्या आप नहीं देखते कि हम कैसी तकलीफ़ में हैं? क्या आप नहीं देखते कि हमारा कष्ट कितना बढ़ चुका है? आदम -अलैहिस्सलाम- कहेंगे : आज मेरा रब बहुत गुस्से में है। ऐसा गुस्सा न कभी पहले किया था और न बाद में करेगा। मुझे उसने एक पेड़ के फल से मना किया था, लेकिन मैंने खा लिया था। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। तुम किसी दूसरे के पास जाओ। तुम नूह -अलैहिस्सलाम- के पास जाओ। लोग नूह -अलैहिस्सलाम- के पास आएँगे और कहेंगे : ऐ नूह, आप प्रथम रसूल बनकर ज़मीन पर आए और अल्लाह ने आपको अपना शुक्रगुज़ार बंदा कहा है। आप हमारे लिए अपने पालनहार के पास सिफ़ारिश कर दें। क्या आप नहीं देखते कि हम कैसी तकलीफ़ में हैं? वह कहेंगे : आज मेरा रब बहुत गुस्से में है। न इससे पहले कभी ऐसे गुस्से में था और न बाद में कभी ऐसे गुस्से में होगा। दरअसल, मुझे एक दुआ का अधिकार था, जो मैंने अपनी जाति के विरुद्ध कर डाली है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मेरे सिवा तुम किसी और के पास जाओ। तुम इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- के पास जाओ। यह सुनकर सब लोग इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- के पास आएँगे और कहेंगे : ऐ इब्राहीम! आप अल्लाह के नबी और तमाम अहले ज़मीन में से उसके दोस्त हैं। आप रब के पास हमारी सिफारिश करें। क्या आप नहीं देखते कि हमें कैसी तकलीफ़ हो रही है? लेकिन वह भी उनसे कहेंगे : आज मेरा रब बहुत गुस्से में है। न इससे पहले कभी इतना गुस्सा हुआ और न बाद में होगा। मैंने (दुनिया में) तीन झूठी बातें कही थीं। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मेरे सिवा तुम किसी और के पास जाओ। अच्छा, तुम मूसा -अलैहिस्सलाम- के पास जाओ। फिर लोग मूसा -अलैहिस्सलाम- के पास जाएँगे और कहेंगे : ऐ मूसा ! आप अल्लाह के रसूल हैं। अल्लाह ने आपको, अपने साथ बात करने का सौभाग्य प्रदान करके और रसूल बनाकर, अन्य लोगों की तुलना में श्रेष्ठता प्रदान की है। आज आप अल्लाह के सामने हमारी सिफ़ारिश करें। क्या आप नहीं देखते कि हम किस प्रकार के कष्ट में हैं? मूसा -अलैहिस्सलाम- कहेंगे : आज तो मेरा रब बहुत गुस्से में है। इतना गुस्सा न कभी हुआ था और न कभी होगा। दरअसल, मैंने एक ऐसे व्यक्ति का वध कर दिया था, जिसके वध का मुझे आदेश न था। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। तुम किसी और के पास जाओ। तुम ईसा -अलैहिस्सलाम- के पास जाओ। चुनाँचे सब लोग ईसा -अलैहिस्सलाम- के पास जाएँगे और कहेंगे : ऐ ईसा! आप अल्लाह के रसूल और वह शब्द हैं, जो उसने मरयम -अलैहिस्सलाम- की तरफ़ भेजा था। आप उसकी ओर से प्रेषित रूह हैं और आपने गोद में लोगों से बात की थी। आप हमारे लिए सिफारिश करें। आप देखें कि हम किस मुसीबत में हैं? ईसा -अलैहिस्सलाम- कहेंगे कि आज मेरा परवरदिगार बहुत गुस्से में है। इतना गुस्सा वह न कभी हुआ था और न कभी में होगा। ईसा -अलैहिस्सलाम- किसी गुनाह का ज़िक्र नहीं करेंगे। अलबत्ता, यह ज़रूर कहेंगे : मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मुझे अपनी चिंता सता रही है। मेरे अलावा किसी और के पास जाओ। तुम लोग मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास जाओ। लोग मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास जाएँगे और कहेंगे : ऐ मुहम्मद! आप अल्लाह के रसूल और अंतिम नबी हैं। अल्लाह ने आपके अगले तथा पिछले सब गुनाह माफ़ कर दिए हैं। आप अल्लाह से हमारी सिफारिश फरमाएँ। क्या आप नहीं देखते कि हम कैसे कष्ट में हैं? अतः मैं चल पड़ूँगा और अर्श के नीचे जाकर अपने सर्वशक्तिमान एवं महान रब के सामने सजदे में गिर जाऊँगा। फिर अल्लाह अपनी प्रशंसा तथा स्तुति की ऐसी-ऐसी बातें मेरे दिल मे डाल देगा, जो मुझसे पहले किसी के दिल में डाली नहीं गई होंगी। चुनाँचे मैं उसी के अनुसार अल्लाह की प्रशंसा व स्तुति करूँगा। फिर कहा जाएगा : ऐ मुहम्मद! अपना सर उठाओ। तुम माँगो, तुम्हें दिया जाएगा तथा सिफ़ारिश करो, तुम्हारी सिफ़ारिश ग्रहण की जाएगी। अतः, मैं सर उठाऊँगा और कहूँगा : ऐ मेरे रब! मेरी उम्मत पर रहम फ़रमा। ऐ मेरे रब! मेरी उम्मत पर रहम फ़रमा। ऐ मेरे रब! मेरी उम्मत पर रहम फ़रमा। चुनाँचे कहा जाएगा : ऐ मुहम्मद! अपनी उम्मत के उन लोगों को, जिनका हिसाब नहीं होगा, जन्नत के दाएँ दरवाज़े से दाख़िल करो। जबकि वे अन्य लोगों के साथ, दूसरे दरवाज़ों से भी जन्नत में प्रवेश कर सकते हैं।” फिर आपने फरमाया : “क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है! जन्नत के दरवाज़ों के दो पाटों के बीच की दूरी मक्का और हिमयर -या मक्का और बुसरा- के बीच की दूरी के बराबर है।”

[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح البخاري - 4712]

व्याख्या

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों के साथ एक निमंत्रण में शरीक हुआ। वहाँ आपके साथ बकरी का बाज़ू रखा गया। क्योंकि आपके बकरी के बाज़ू का मांस बहुत पसंद था। चुनांचे आपने अपने दाँत से एक बार उसे काटकर खाया और उसके बाद फ़रमाया : मैं क़यामत के दिन आदम की संतानों का सरदार रहूँगा। आपने यह बात अल्लाह के अनुग्रह का आभार व्यक्त करने के लिए कही। उसके बाद पूछा : क्या तुम जानते हो कि यह कैसे होगा? फ़रमाया : क़यामत के दिन सभी लोग एक विशाल, सपाट भूमि पर एकत्र किए जाएँगे। लोग इस तरह एकत्र होंगे कि एक पुकारने वाला सब को अपनी आवाज़ सुना सकेगा। अर्थात्, कोई बात करे, तो सब तक आवाज़ पहुँच जाएगी। भूमि इतनी सपाट होगी कि एक देखने वाला सब को देख सकेगा। कोई उसकी नज़र से छुपा नहीं रहेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो कोई ऐसी वस्तु नहीं होगी, जो किसी को देखने वालों की नज़रों से छुपा सके। सूरज (का हाल यह होगा कि) सृष्टियों से एक मील निकट आ जाएगा। चुनांचे लोगों को असहनीय कष्ट एवं पीड़ा का सामना होगा। अतः सिफ़ारिश द्वारा उससे छुटकारा पाना चाहेंगे। ऐसे में अल्लाह ईमान वालों के दिलों में यह बात डालेगा कि वे मानव पिता आदम अलैहिस्सलाम के पास जाएँ। चुनांचे लोग उनके पास जाएँगे और उनकी फ़ज़ीलत बयान करेंगे, ताकि वह अल्लाह के यहाँ उनके लिए सिफ़ारिश कर दें। लोग उनसे कहेंगे : आप मानव पिता हैं। अल्लाह ने आपको अपने हाथ से पैदा किया है, अपने फ़रिश्तों से सजदा कराया है, हर वस्तु का नाम सिखाया है और आपके अंदर अपनी ओर से रूह फूँकी है। लेकिन वह असमर्थता व्यक्त कर देंगे और कहेंगे : मेरा पालनहार आज इतना क्रोधित है कि न इससे पहले कभी इतना क्रोधित था और न इसके बाद रहेगा। फिर वह उनसे होने वाले गुनाह का ज़िक्र करेंगे। गुनाह यह था कि अल्लाह ने उन्हें एक पेड़ में से खाने से मना किया था, लेकिन उन्होंने खा लिया था। वह कहेंगे : ख़ुद मुझे ही सिफ़ारिश की आवश्यकता है। तुम किसी और के पास चले जाओ। तुम नूह (अलैहिस्सलाम) के पास चले जाओ। चुनांचे लोग नूह (अलैस्सलाम) के पास जाएँगे और कहेंगे : आप इस धरा पर बसने वालों की ओर अल्लाह के भेजे हुए पहले रसूल हैं। अल्लाह ने आपको आभारी बंदे का नाम दिया है। लेकिन वह भी असमर्थता व्यक्त कर देंगे और कहेंगे : मेरा पालनहार आज इतना क्रोधित है कि न इससे पहले कभी इतना क्रोधित था और न इसके बाद रहेगा। दरअसल उन्हें एक दुआ करने का अधिकार दिया गया था, जो उन्होंने ख़ुद अपनी जाति के विरुद्ध कर डाली थी। अतः ख़ुद उन्हें ही सिफ़ारिश की ज़रूरत है। वह कहेंगे कि तुम किसी और के पास चले जाओ। तुम इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के पास चले जाओ। चुनांचे लोग इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास जाएँगे और कहेंगे : आप इस धरा पर अल्लाह के मित्र हैं। अतः अपने पालनहार के यहाँ हमारी सिफ़ारिश कर दें। क्या आप देखते नहीं कि हम किस हाल में हैं? लेकिन इब्राहीम अलैहिस्सलाम उनसे कहेंगे : मेरा पालनहार आज इतना क्रोधित है कि न इससे पहले कभी उतना क्रोधित था और न इसके बाद रहेगा। दरअसल मैंने तीन झूठ बोले थे। तीन झूठ से उनकी मुराद एक बार 'मैं बीमार हूँ कहना', एक बार 'यह काम उनमें से सबसे बड़े बुत ने किया है' कहना और एक बार शासक के फ़ितने से बचने के लिए अपनी पत्नी सारा से यह कहना है कि उसे बता देना कि मैं तुम्हारा भाई हूँ। सच्चाई यह है कि ये तीनों वाक्य सांकेतिक शब्दों में बात करने की श्रेणी में आते हैं, लेकिन चूँकि वे देखने में झूठ जैसे लगते थे, इसलिए उन्होंने उनके डर से ख़ुद को सिफ़ारिश करने के योग्य नहीं समझा। क्योंकि जो अल्लाह के बारे में ज्ञान और उसकी निकटता अधिक रखता है, वह उससे डरता भी ज़्यादा है। वह कह देंगे कि मुझे ख़ुद ही सिफ़ारिश की ज़रूरत है, इसलिए तुम किसी और के पास जाओ। तुम मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास जाओ। चुनांचे लोग मूसा अलैहिस्सलाम के पास जाएँगे और कहेंगे : ऐ मूसा! आप अल्लाह के रसूल हैं। अल्लाह ने आपको रसूल बनाने के साथ बात करने का भी सम्मान प्रदान किया है। अतः आप अपने पालनहार के पास हमारे लिए सिफ़ारिश कर दें। क्या आप देखते नहीं कि हम किस अवस्था में हैं? लेकिन वह कहेंगे : मेरा पालनहार आज इतना क्रोधित है कि न इससे पहले कभी उतना क्रोधित था और न इसके बाद रहेगा। दरअसल मैंने एक व्यक्ति को मार डाला था, जिसे मारने का आदेश मुझे प्राप्त नहीं था। ख़ुद मुझे ही किसी की सिफ़ारिश की ज़रूरत है। तुम किसी और के पास चले जाओ। तुम ईसा बिन मरयम के पास चले जाओ। चुनांचे लोग ईसा अलैहिस्सलाम के पास जाएँगे और कहेंगे : आप अल्लाह के रसूल हैं, उसका शब्द हैं, जिसे उसने मरयम की ओर भेजा था और उसकी ओर से प्रेषित आत्मा हैं। आपने माँ की गोद ही में लोगों से बात की थी। क्या आप नहीं देखते कि हम किस अवस्था में हैं? लेकिन वह कहेंगे : मेरा पालनहार आज इतना क्रोधित है कि न इससे पहले कभी उतना क्रोधित था और न इसके बाद रहेगा। वह किसी गुनाह का उल्लेख नहीं करेंगे। अलबत्ता कहेंगे कि ख़ुद मुझे ही किसी की सिफ़ारिश की ज़रूरत है। तुम किसी और के पास चले जाओ। तुम मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास चले जाओ। चुनांचे लोग मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास जाएँगे और कहेंगे : आप अल्लाह के रसूल और अंतिम नबी हैं। अल्लाह ने आपके अगले तथा पिछले सभी गुनाह माफ़ कर दिए हैं। इसलिए अपने पालनहार के निकट हमारी सिफ़ारिश कर दीजिए। क्या आप देखते नहीं कि हम किस अवस्था में हैं? चुनांचे मैं चल पड़ूँगा, अर्श के नीचे पहुँचूँगा और अपने पालनहार के सामने सजदे में गिर जाऊँगा। फिर अल्लाह मुझे अपनी प्रशंसा एवं स्तुति के ऐसे-ऐसे शब्द सिखाएगा, जो मुझसे पहले किसी को नहीं सिखाए गए थे। फिर कहा जाएगा : ऐ मुहम्मद! आप सर उठाएँ। आप माँगें, आपको दिया जाएगा। आप सिफ़ारिश करें, आपकी सिफ़ारिश क़बूल की जाएगी। चुनांचे मैं सर उठाऊँगा और कहूँगा : ऐ मेरे पालनहार! मेरी उम्मत! ऐ मेरे पालनहार! मेरी उम्मत! ऐ मेरे पालनहार! मेरी उम्मत! चुनांचे आपकी सिफ़ारिश क़बूल कर ली जाएगी। तथा आपसे कहा जाएगा : !ऐ मुहम्मद! आप अपनी उम्मत के ऐसे लोगों को जन्नत के दाएँ द्वार से अंदर दाख़िल करें, जिन्हें हिसाब नहीं देना है। जबकि वे दूसरे द्वारों से भी लोगों के साथ अंदर जा सकते हैं। फिर आपने कहा : उसकी क़सम, जिसके हाथ में मेरी जान है, जन्नत के दो किवाड़ों के बीच उतना फ़ासला है, जितना मक्का तथा यमन के सनआ के बीच है या जितना मक्का और शाम के बुसरा यानी हूरान नगर के बीच है।

हदीस का संदेश

  1. अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की विनम्रता कि आप निमंत्रण स्वीकार कर लेते और अपने आम साथियों के साथ खाना खा लिया करते थे।
  2. हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुनिया के सबसे फ़ज़ीलत वाले इन्सान हैं।
  3. क़ाज़ी कहते हैं : कहा गया है : 'सैयद' ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है, जो अपने समाज में प्रमुख स्थान रखता हो और लोग कठिन समय में उसकी ओर रुख करते हों। अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुनिया व आख़िरत दोनों जहानों में लोगों के सैयद (सरदार) हैं, लेकिन आपने यहाँ विशेष रूप से क़यामत के दिन का ज़िक्र इसलिए किया है कि उस दिन आपकी सरदारी स्पष्ट रूप से नज़र आएगी, सब लोग उसे स्वीकार करेंगे और उस दिन सभी लोग आपके झंडे के नीचे होंगे।
  4. अल्लाह लोगों के दिलों में अंतिम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बजाय पहले आदम अलैहिस्सलाम और उनके बाद के नबियों के पास जाने और उनसे सिफ़ारिश करने की बात डालेगा, ताकि आपकी फ़ज़ीलत खुलकर सामने आ जाए। सचमुच आप सबसे ऊँचे पद और संपूर्ण निकटता वाले इन्सान होंगे।
  5. जो व्यक्ति किसी इन्सान से कुछ लेना चाहता हो, उसे पहले उसके अच्छे गुणों का वर्णन करके उसकी प्रशंसा करनी चाहिए, ताकि उसकी इच्छा पूरी होने की संभावना बढ़ जाए।
  6. जिस व्यक्ति से कुछ माँगा जाए और वह उसे देने की शक्ति न रखता हो, वह उचित तरीक़े से असमर्थता व्यक्त कर दे। किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में बता देना भी मुसतहब है, जिसके बारे में लगे कि वह दे सकता है।
  7. क़यामत के दिन की भयावह स्थिति और कठोर परिस्थितियों का वर्णन।
  8. नबियों की विनम्रता कि वह अपने कामों को याद करेंगे, ताकि यह एहसान पैदा हो कि वह अल्लाह के सामने खड़े होने के योग्य नहीं हैं।
  9. क़यामत के दिन की महान सिफ़ारिश की पुष्टि, जो सृष्टियों के बीच निर्णय के लिए की जाएगी।
  10. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए वसीला तथा मक़ाम-ए-महमूद का सबूत।
  11. अल्लाह की प्रशंसा एवं स्तुति की कोई सीमा नहीं है। यही कारण है कि अल्लाह वहाँ आपके दिल प्रशंसा एवं स्तुति के ऐसे-ऐसे शब्द डालेगा, जो आपसे पहले किसी के दिल में डाले नहीं गए थे।
  12. इस बात का बयान कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उम्मत सबसे उत्तम उत्तम है। जन्नत में प्रवेश से संबंधित उसे कई विशिष्टताएँ प्राप्त होंगी। चुनांचे इस उम्मत के जिन लोगों को हिसाब के मर्हले से गुज़रना नहीं होगा, वे एक ख़ास द्वार से प्रवेश करेंगे। जबकि दूसरे द्वारों से भी अन्य लोगों के साथ प्रवेश कर सकेंगे।
अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू स्पेनिश इंडोनेशियाई बंगला फ्रेंच रूसी बोस्नियाई सिंहली चीनी फ़ारसी वियतनामी तगालोग कुर्दिश होसा पुर्तगाली मलयालम तिलगू सवाहिली थाई पशतो असमिया السويدية الأمهرية الهولندية الغوجاراتية النيبالية الدرية الرومانية المجرية الموري Malagasy Kanadische Übersetzung الولوف الأوكرانية الجورجية المقدونية الخميرية الماراثية
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