عن مُطَرِّفِ بن عبد الله قال: « صَلَّيْتُ أنا وعِمْرَانُ بْنُ حُصَيْنٍ خَلْفَ علِيِّ بنِ أَبِي طالب، فكان إذا سجد كَبَّرَ، وإذا رفع رأسه كَبَّرَ، وإذا نهض من الركعتين كَبَّرَ، فلمَّا قضَى الصلاةَ أَخَذَ بيدَيَّ عِمْرَانُ بْنُ حُصَيْنٍ، وقال: قد ذكَّرني هذا صلاةَ محمد صلى الله عليه وسلم أو قال: صَلَّى بنا صلاة محمد صلى الله عليه وسلم ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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मुतर्रिफ़ बिन अब्दुल्लाह कहते हैं कि मैं और इमरान बिन हुसैन ने अली बिन अबू तालिब (रज़ियल्लाहु अंहुम) के पीछे नमाज़ पढ़ी। जब वह सजदे में जाते, तो तकबीर कहते, जब सर उठाते, तो तकबीर कहते और जब दूसरी रकात के बाद खड़े होते, तो तकबीर कहते। जब उन्होंने नमाज़ पूरी कर ली, तो इमरान बिन हुसैन ने मेरे दोनों हाथों को पकड़कर कहाः इन्होंने मुझे मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नमाज़ याद दिला दी। या फिर यह कहा कि इन्होंने हमें मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की जैसी नमाज़ पढ़ाई।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस में नमाज़ के एक महत्वपूर्ण चिह्न यानी "अल्लाहु अकबर" के माध्यम से उच्च एवं महान अल्लाह की बड़ाई तथा महानता के इज़हार का वर्णन है। मुतर्रिफ़ वर्णन करते हैं कि उन्होंने और इमरान बिन हुसैन ने एक बार अली बिन अबू तालिब -रज़ियल्लाहु अनहु- के पीछे नमाज़ पढ़ी। वह सजदे में जाते समय तकबीर कहते थे, सजदे से सर उठाते समय तकबीर कहते थे और जब दो तशह्हुद वाली नमाज़ के पहले तशह्हुद से खड़े होते, तब भी तकबीर कहते थे। आज, बहुत-से लोगों ने इन स्थानों में ज़ोर से तबीर कहना छोड़ दिया है। फिर, जब नमाज़ खतम हुई, तो इमरान ने मुतर्रिफ़ का हाथ पकड़ा और बताया कि आज अली -अल्लाह उनसे प्रसन्न हो- ने उन्हें अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की नमाज़ याद दिला दी। इसलिए कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- भी इन स्थानों में तकबीर कहा करते थे।

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