عن ابن مسعود رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : «من أصابته فَاقَة فأنْزَلها بالناس لم تُسَدَّ فَاقَتُهُ، ومن أنْزَلها بالله، فَيُوشِكُ الله له بِرزق عاجل أو آجل».
[صحيح] - [رواه أبو داود والترمذي وأحمد]
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अब्दुल्लाह बिन मसऊद- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः जिसे निर्धनता का सामना हो और उसे लोगों के सामने रखे, उसकी निर्धनता कभी दूर न होगी और जो उसे अल्लाह के सामने रखे, उसे अल्लाह की ओर से रोज़ी प्रदान की जाएगी, चाहे जल्दी हो या देर से।
[सह़ीह़] - [इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है। - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है।]
अब्दुल्लाह बिन मसऊद -रज़ियल्लाहु अनहु- बता रहे हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "जिसे निर्धनता का सामना हो" हदीस में प्रयुक्त शब्द "فاقة" का अर्थ है अत्यधिक आवश्यकता। लेकिन इसका अधिकतर प्रयोग निर्धनता और आर्थिक तंगी के लिए होता है। "और उसे लोगों के सामने रखे" यानी उसे लोगों से बयान करे, शिकातय के तौर पर उनके सामने रखे और उनसे अपनी इस निर्धनता को दूर करने का निवेदन करे, तो उसका परिणाम यह निकलेगा कि "उसकी निर्धनता कभी दूर न होगी।" यानी दरिद्रता कभी उसका पीछा नहीं छोड़ेगी। जैसे ही एक ज़रूरत पूरी होगी, दूसरी उससे भी बड़ी ज़रूरत उसके सामने आ खड़ी होगी। लेकिन इसके विपरीत "जो उसे अल्लाह के सामने रखेगा" यानी अपने पाक प्रभु पर भरोसा करेगा "उसे अल्लाह की ओर से रोज़ी प्रदान की जाएगी। या तो जल्दी" वह इस तौर पर कि उसे धन प्रदान कर धनवान बना दे, "या देर से" यानी आखिरत में।