عن ابن عباس رضي الله عنهما مرفوعاً: «عَيْنَانِ لاَ تَمسُّهُمَا النَّار: عَيْنٌ بَكَتْ من خَشْيَة الله، وعَيْنٌ بَاتَت تَحْرُسُ في سَبِيل الله».
[صحيح] - [رواه الترمذي]
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अब्दुल्लाह बिन अब्बास- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "दो आँखों को जहन्नम की आग छू भी नहीं सकती; एक वह आँख जो अल्लाह के डर से रोए और दूसरी वह आँख जो अल्लाह के मार्ग में पहरेदारी करते हुए जागे।"
सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस का अर्थ यह है कि आग ऐसी आँख को नहीं छूएगी, जो अल्लाह के भय से रोए। जब बंदा अल्लाह की महानता एवं सामर्थ्य तथा अपनी विवशता एवं अल्लाह का हक़ अदा करने में कोताही को याद करता है, तो उसकी दया की आशा में एवं उसके दंड एवं नाराज़गी के भय से रो पड़ता है। इस प्रकार के व्यक्ति को आग से मुक्ति का वचन दिया गया है। दूसरी आँख जिसे आग नहीं छूएगी, वह आँख है, जो अल्लाह के मार्ग में सीमाओं एवं युद्ध के मैदानों में जागकर रात गुज़ारे, ताकि मुसलमानों की जान की सुरक्षा हो सके। आपके शब्द "दोनों आँखों को आग नहीं छूँएगी" में शरीर के एक अंग का नाम लेकर पूरा शरीर मुराद लिया गया है। आशय यह है कि जो व्यक्ति अल्लाह के भय से रोया और जिसने अल्लाह के मार्ग में पहरेदारी करते हुए रात गुज़ारी, अल्लाह दोनों के शरीर को आग पर हराम कर देगा।

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