عن أبي هريرة رضي الله عنه أن النبي صلى الله عليه وسلم قال: «انْتَدَبَ الله (ولمسلم: تَضَمَّنَ الله) لِمَنْ خَرَجَ فِي سَبِيلِهِ، لا يُخْرِجُهُ إلاَّ جِهَادٌ فِي سَبِيلِي، وإيمان بي، وتصديق برسلي فهو عَلَيَّ ضامن: أَنْ أُدْخِلَهُ الجنة، أو أرجعه إلى مسكنه الذي خرج منه، نائلًا ما نال من أجر أو غنيمة».
ولمسلم: «مثل المجاهد في سبيل الله -والله أعلم بمن جاهد في سبيله- كَمَثَلِ الصَّائِمِ القائم، وَتَوَكَّلَ الله لِلْمُجَاهِدِ فِي سَبِيلِهِ إنْ تَوَفَّاهُ: أن يدخله الجنة، أو يرجعه سالما مع أجر أو غنيمة».
[صحيح] - [الرواية الأولى: متفق عليها.
الرواية الثانية: متفق عليها أيضا]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "अल्लाह ने उस व्यक्ति की ज़िम्मेवारी ली है, जो उसके रास्ते में जिहाद कि लिए निकला। अल्लह कहता है कि यदि उसे मेरे रास्ते में जिहाद, मुझपर ईमान तथा मेरे रसूल की पुष्टि की भावना ही ने निकाला, तो मेरी ज़िम्मेवारी है कि मैं उसे जन्नत में दाखिल करूँ अथवा नेकी या ग़नीमत के साथ, जो उसे प्राप्त होगी, घर वापस ले आऊँ।"
तथा मुस्लिम की रिवायत में हैः "अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले की मिसाल, (और अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि कौन उसकी राह में जिहाद करता है) लगातार रोज़ा रखने वाले और नमाज़ पढ़ने वाले की तरह है। अल्लाह ने उसकी राह में जिहाद करने वाले की ज़िम्मेवारी ली है कि यदि वह मर गया, तो उसे जन्नत में दाख़िल करेगा या फिर पुण्य अथवा ग़नीमत के धन के साथ सुरक्षित वापस लाएगा।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने तमाम रिवायतों के साथ नक़ल किया है।]
इस हदीस में अल्लाह की ओर से तीन चीज़ों की ज़मानत है, उस के लिए जो निष्ठापूर्ण ईमान के साथ अल्लाह के रास्ते में जिहाद के लिए निकला हो। यदि शहीद हो जाए, तो जन्नत में प्रवेश करेगा। यदि जीवित रहा, तो नेकी अथवा माले गनीमत के संग वापस होगा, अर्थात बिना गनीमत सिर्फ़ नेकी के साथ या नेकी और गनीमत दोनों के साथ। जहाँ तक दूसरी रिवायत की बात है, जिसे उम्दा के लेखक ने मुस्लिम की तरफ़ मंसूब किया है, हालाँकि वह बुखारी में भी है, उस में है कि अल्लाह के रास्ते में जिहाद की श्रेष्ठता उस व्यक्ति की तरह है, जो मस्जिद में दाखिल होकर सदा नमाज़ पढ़ता रहता हो, अथवा रोज़ेदार जो हमेशा रोज़ा रखता हो, और ऐसा करना मनुष्य के बस से बाहर है।