عن ابن عمر رضي الله عنهما ، عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: «صلاة الليل والنَّهار مثْنَى مثْنَى».
[صحيح] - [رواه أبو داود وأحمد والترمذي والنسائي وابن ماجه]
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अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से रिवायत है कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फरमायाः "रात और दिन की नमाज़ दो-दो रकात है।"
[सह़ीह़] - [इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है । - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है। - इसे नसाई ने रिवायत किया है। - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है।]
इस हदीस की असल सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम में इन शब्दों के साथ है : "रात की नमाज़ दो-दो रकात है।" लेकिन किसी वर्णनकर्ता ने यहाँ "दिन" का इज़ाफ़ा कर दिया। जबकि यह इज़ाफ़ा दुर्बल है। इसका अर्थ है, जो दिन अथवा रात में नफ़ल पढ़ना चाहे, वह हर दो रकात के बाद सलाम फेर दे। इसे स्पष्ट रूप से सहीह मुस्लिम की एक रिवायत में अब्दुल्लाह बिन उमर -रज़ियल्लाहु अनहुमा- ने बयान कर दिया है। जब उनसे पूछा गया कि "दो-दो रकात का क्या मतलब है?" तो उन्होंने उत्तर दिया : "इसका मतलब यह है कि तुम हर दो रकात के बाद सलाम फेर दो।" रात की नमाज़ के बारे में अधिकतर उलेमा का यही मत है। यानी रात की नमाज़ में एक सलाम से दो रकात से अधिक पढ़ना जायज़ नहीं है। हाँ, वित्र की नमाज़ की बात अलग है। उसमें एक सलाम से दो रकात से अधिक पढ़ी जा सकती है। क्योंकि ऐसा सुन्नत से साबित है। रही बात दिन की नमाज़ की, तो वैसे तो दो रकात से ज़्यादा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन दो-दो रकात पढ़ना ही श्रेष्ठ है।