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عَنْ أُمِّ سَلَمَةَ أُمِّ المؤْمنينَ رَضيَ اللهُ عنها أَنَّهَا قَالَتْ: سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صلى الله عليه وسلم يَقُولُ:
«مَا مِنْ مُسْلِمٍ تُصِيبُهُ مُصِيبَةٌ فَيَقُولُ مَا أَمَرَهُ اللهُ: {إِنَّا لِلهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ} [البقرة: 156]، اللَّهُمَّ أْجُرْنِي فِي مُصِيبَتِي، وَأَخْلِفْ لِي خَيْرًا مِنْهَا، إِلَّا أَخْلَفَ اللهُ لَهُ خَيْرًا مِنْهَا»، قَالَتْ: فَلَمَّا مَاتَ أَبُو سَلَمَةَ قُلْتُ: أَيُّ الْمُسْلِمِينَ خَيْرٌ مِنْ أَبِي سَلَمَةَ؟ أَوَّلُ بَيْتٍ هَاجَرَ إِلَى رَسُولِ اللهِ صلى الله عليه وسلم، ثُمَّ إِنِّي قُلْتُهَا، فَأَخْلَفَ اللهُ لِي رَسُولَ اللهِ صلى الله عليه وسلم.

[صحيح] - [رواه مسلم] - [صحيح مسلم: 918]
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मुलमानों की माता उम्म-ए-सलमा रज़ियल्लाहु अनहा से वर्णित है, वह कहती हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुए सना है :
''जब किसी मुसलमान को कोई दुख पहुँचता है, और वह यह दुआएँ पढ़ता है, जिनका अल्लाह ने आदेश दिया है : {إِنَّا لِلهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ} [البقرة: 156] (हम सब अल्लाह के हैं और उसी की ओर लौटकर जाना है।) "اللَّهُمَّ أْجُرْنِي فِي مُصِيبَتِي، وَأَخْلِفْ لِي خَيْرًا مِنْهَا، إِلَّا أَخْلَفَ اللهُ لَهُ خَيْرًا مِنْهَا" (हे अल्लाह! मुझे मेरे दुःख का प्रतिफल दे और उसका बेहतर बदल दे।), तो अल्लाह उसे पिछले से अच्छा बदल प्रदान करता है।'' वह कहती हैं : जब अबू सलमा की मौत हो गई, तो मैंने सोचा कि कौन-सा मुसलमान अबू सलमा से अच्छा हो सकता है? उनका परिवार पहला परिवार था, जिसने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर हिजरत किया! फिर मैंने यह दुआएँ पढ़ीं, तो अल्लाह ने उनके बदले मुझे अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को प्रदान किया।

[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।] - [صحيح مسلم - 918]

व्याख्या

मुसमानों की माता आइशा रज़ियल्लाहु अनहा कहती हैं कि उन्होंने एक दिन अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना है : जब किसी मुसलमान पर कोई मुसीबत आती है और वह अल्लाह का यह प्रिय वाक्य कहता है : {हम अल्लाह ही के हैं और हमें उसी की ओर लौटकर जाना है।} [सूरा बक़रा : 156] ऐ अल्लाह! मुझे इस मुसीबत पर सब्र करने का प्रतिफल प्रदान कर और इसका मुझे बेहतर बदला दे, तो अल्लाह उसे बेहतर बदला प्रदान करता है। उनका कहना है कि जब उनके पति अबू सलमा की मृत्यु हो गई, तो मैंने अपने दिल में कहा कि अबू सलमा से बेहतर भला कौन-सा मुसलमान हो सकता है? उनका घर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर हिजरत करने वाला पहला घर था। लेकिन इसके बावजूद अल्लाह ने मेरी मदद की और यह वाक्य कह दिया, तो अल्लाह ने अबू सलमा के स्थान पर मुझे अल्लाह के रसूल को दे दिया, जो निश्चचिंत रूप से उनसे बेहतर थे।

हदीस का संदेश

  1. इस हदीस में मुसीबत के समय धैर्य न खोने और सब्र से काम लेने का आदेश दिया गया है।
  2. मुसीबत के समय अल्लाह से दुआ करनी चाहिए, क्योंकि उसके पास हर चीज़ का बदल मौजूद है।
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