عن جبير بن مطعم رضي الله عنه قال: بينما هو يسير مع النبي صلى الله عليه وسلم مَقْفَلَه من حُنَيْن، فَعَلِقَهُ الأعراب يسألونه، حتى اضطروه إلى سَمُرَة، فَخَطِفَت رداءه، فوقف النبي صلى الله عليه وسلم فقال: «أعطوني ردائي، فلو كان لي عدد هذه العِضَاهِ نَعَمًا، لقسمته بينكم، ثم لا تجدوني بخيلًا ولا كذابًا ولا جبانًا».
[صحيح] - [رواه البخاري]
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जुबैर बिन मुतइम (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि वे हुनैन से लौटते हुए अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ चल रहे थे कि कुछ देहाती आपसे माँगने लगे और ऐसे लिपट गए कि आपको कीकर के एक पेड़ तक लेकर चले गए, जिसमें आपकी चादर अटक गई। अतः, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खड़े हो गए और फ़रमाया : "मुझे मेरी चादर ला दो। देखो, यदि मेरे पास इस काँटेदार पेड़ के समान भी जानवर होते, तो मैं उन्हें तुम्हारे बीच बाँट देता। फिर तुम मुझे कंजूस एवं झूठा तथा कायर नहीं पाते।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

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