عن أبي هريرة رضي الله عنه عن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: «لو كان لي مِثْلُ أحدٍ ذهبًا، لسرني أن لا تمر عليَّ ثلاث ليالٍ وعندي منه شيءٌ إلا شيء أرْصُدُهُ لِدَيْنٍ».
[صحيح] - [متفق عليه واللفظ للبخاري]
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अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः यदि मेरे पास उहुद पर्वत के बराबर सोना हो जाए तो मुझे यह अच्छा नहीं लगेगा कि उसका कुछ भी भाग मेरे पास तीन दिन तक बाकी रहे, सिवाय उसके जिसे मैंने क़र्ज़ चुकाने के लिए बचा रखा हो।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है और शब्द बुख़ारी के हैं।

व्याख्या

यदि मैं उहुद पर्वत के बराबर भी शुद्ध सोने का मालिक बन जाऊँ, तो मैं पूरे को अल्लाह के मार्ग में खर्च कर दूँगा और उसका मात्र उतना भाग ही बचाकर रखूँगा, जितने की ज़रूरत अधिकारों की अदायगी एवं कर्ज़ों को चुकाने के लिए हो।

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