عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : "تَعِسَ عَبْدُ الدينار، تَعِسَ عَبْدُ الدرهم، تَعِسَ عَبْدُ الخَمِيصَة، تعس عَبْدُ الخَمِيلَة، إن أُعْطِيَ رَضِيَ، وإن لم يُعْطَ سَخِطَ، تَعِسَ وانْتَكَسَ، وإذا شِيكَ فلا انتَقَشَ، طُوبَى لعبد آخذ بعِنَانِ فرسه في سبيل الله، أشعث رأسه، مُغْبَرَّةً قدماه، إن كان في الحِرَاسَةِ كان في الحِرَاسَةِ، وإن كان في السَّاقَةِ كان في السَّاقَةِ، إن استأذن لم يُؤْذَنْ له، وإن شَفَعَ لم يُشَفَّعْ".
[صحيح] - [رواه البخاري. ملحوظة: أول الحديث في كتاب التوحيد يخالف ما في صحيح البخاري، لفظ البخاري: (تَعِسَ عَبْدُ الدِّينَارِ، وَعَبْدُ الدِّرْهَمِ، وَعَبْدُ الخَمِيصَةِ)، وليس في مصادر التخريج ذكر الخميلة، لكن عند ابن الأعرابي في معجمه (2/ 455 ح890) وأبي الشيخ الأصبهاني في أمثال الحديث (ص: 154 ح116): (عبد الحُلة)]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः दीनार के बंदे का विनाश हो। दिरहम के बंदे का विनाश हो। रेशमी कपड़े के बंदे का विनाश हो। रुएँदार कपड़े के बंदे का विनाश हो। अगर दिया गया तो प्रसन्न और न दिया गया तो अप्रसन्न। वह हलाक हो और नाकाम हो। अगर किसी परेशानी में पड़े तो कोई उसे सहारा देने वाला न हो। तथा ऐसे बंदे के लिए खुशखबरी है, जो अल्लाह की राह में अपने घोड़े की लगाम पकड़े हुआ हो। उसके सिर के बाल बिखरे, पाँव धूल से अटे हों। यदि उसे पहरेदारी पर लगा दिया जाए तो पहरेदारी करता रहे और यदि सेना के पीछे रखा जाए तो पीछे ही रहे। यदि किसी के यहाँ प्रवेश करने की अनुमति माँगे तो अनुमति न मिले और यदि किसी की सिफ़ारिश करे तो उसकी सिफ़ारिश ग्रहण न की जाए।
सह़ीह़ - इसे बुखारी ने इन्हीं जैसे शब्दों के साथ रिवायत किया है ।

व्याख्या

इस हदीस में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनकी दौड़-भाग का केंद्र बिंदु, ज्ञान का शिखर तथा प्रथम एवं अंतिम लक्ष्य, दुनिया है। तथा यह कि जिसकी हालत यह हो, उसका अंजाम विनाश और असफलता के सिवा कुछ नहीं है। इस प्रकार के लोगों की निशानी यह है कि वे दुनिया के अत्यंत लोभी होते हैं। यदि मिल गई, तो ठीक। न मिली, तो परेशान। जबकि कुछ लोगों की नज़र अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति एवं आख़िरत पर रहती है। वे पद एवं ख्याति के पीछे नहीं भागते। उनका एकमात्र उद्देश्य अल्लाह एवं उसके रसूल का अनुसरण करना होता है। इस प्रकार के लोगों की पहचान यह है कि वे दिखावे पर ध्यान नहीं देते, जो जगह मिल जाए उससे प्रसन्न रहते हैं, लोगों के निकट महत्वहीन होते हैं तथा पद-प्रतिष्ठा वालों से दूर रहते हैं। यदि वे उनके पास जाने की अनुमति माँगें, तो न मिले और यदि उनके यहाँ सिफ़ारिश करें, तो उनकी सिफ़ारिश ग्रहण न हो। लेकिन उनका ठिकाना जन्नत है, जो प्रशंसनीय प्रतिकार है।

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